रविवार, 9 अक्टूबर 2011

ऐसा भी !!!




नकली बाम / ऊँचे दाम
त्रस्त अवाम / मूक निजाम
भ्रष्टाचार / होता आम
शहरी रोड / ट्रेफिक जाम
कुर्सी आज/ चारों धाम
ख़ूनी हाँथ / मुख में राम
उजड़े खेत/ हल नीलाम
कन्या दान/ मुश्किल काम
राहत  कोष/ माघी घाम
बनते माल/ मिटते ग्राम
अफ़सर राज/ फ़ाइल झाम
आँगन धूप/ ढलती शाम
झूठी शान / नकली नाम
अब  श्रमदान/ पैसा  थाम
रावण  राज /कब आराम
अपना  देश / फिर से गुलाम ?

(चित्र गूगल सर्च से साभार )

रविवार, 2 अक्टूबर 2011

उसी माटी की मूरत पूजी जाती है




कभी कूटी , कभी वो रौंदी जाती है 
उसी माटी की मूरत पूजी जाती है 

गुले गुलज़ार हो जाती है हर डाली  
गुलाबों की कलम जब काटी जाती है 

सुदामा स्नेह की गठरी तो भारी कर 
वज़न से पोटली अब आंकी जाती है 

शहीदों पर किसी दिन फूल पड़ते हैं 
मगर फिर ख़ाक उन पर डाली जाती है 

पुराना रंग रोगन ग़ुम तो है लेकिन 
क़सम गंगा की अब भी खाई जाती है 

(चित्र गूगल सर्च साभार )