कुछ लम्हे दिल के...

एक बार वक़्त से लम्हा गिरा कहीं, वहाँ दास्ताँ मिली लम्हा कहीं नहीं....गुलज़ार

रविवार, 20 जून 2021

पिता जब वृद्ध होने लगे :

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 पिता जब वृद्ध होने लगे थे आहिस्ता-आहिस्ता बदलने लगे थे  आदतें बदल गईं,  प्रयोग की वस्तुएँ भी बदल गईं थीं  कुछ तर्कसंगत थीं तो कुछ अतार्किक ...
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रविवार, 13 जून 2021

चलती का नाम ऑनलाइन ज़िंदगी :

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 और दुनिया पीडीएफ में  बच्चों की पुस्तक पीडीएफ में  बच्चों को काम देना पीडीएफ में बच्चों से काम लेना पीडीएफ में टाइम टेबल पीडीएफ में पाठ्यक्...
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शनिवार, 16 मई 2020

अपेक्षित

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भरा-पूरा परिवार था, है भी बड़े थे, छोटे हैं और हम भी अब कोई कहाँ तो कोई कहाँ कोई किस गाल में तो कोई किस गाल में समाते गए कुछ बचे हैं अ...
शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020

वो सुबह

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सूरज ना पहले उठने पाए अधखुली आँखों से बोला करते थे टिक-टिक घड़ी की सुई के संग टक-टक दौड़ा करते थे ब्रेड गोलकर मुँह में ठूंस लेकर चाय क...
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मंगलवार, 7 अप्रैल 2020

मदारी और बंदर

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मदारी के हाथ में रस्सी है जो बंदर के गले में बंधी है मदारी डमरू बजाता है बंदर नाचता है ऐसे में बंदर के लिए कोई दूसरा विकल्प नहीं मदारी ...
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शुक्रवार, 27 मार्च 2020

सवालों के घेरे

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1. सवाल पूछते ही 'यह समय सवाल करने का नहीं!' 'यह समय मानवता के लिए है!' 'यह समय एक-दूसरे के लिए है!' 'यह स...
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मंगलवार, 24 मार्च 2020

क्यों न ऐसा कुछ किया जाए

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दोस्तों, क्यों न ऐसा कुछ किया जाए अब, जब नगर, गली, मोहल्ला चाक-चौबंद हो खड़ा है हर कोई अपने लिए चिंतित पड़ा है आपदा तो है, फिर भी सुर...
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अर्चना तिवारी
लखनऊ, उत्तर प्रदेश, India
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