कुछ लम्हे दिल के...
एक बार वक़्त से लम्हा गिरा कहीं, वहाँ दास्ताँ मिली लम्हा कहीं नहीं....गुलज़ार
रविवार, 14 अगस्त 2016
तुम्हें पता है ?...
तुम चाहे कितना ही चुप रहो
तुम्हारी आँखों के नुकीले कोर
सदा मुस्कुराते हैं....
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