एक बार वक़्त से लम्हा गिरा कहीं, वहाँ दास्ताँ मिली लम्हा कहीं नहीं....गुलज़ार
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 04/11/2018 की बुलेटिन, " दादा जी, फेसबुक और मंदाकिनी “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
शुक्रिया।
bahut sundar panktiyaan !!
सुंदर प्रस्तुति
शुक्रिया
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 04/11/2018 की बुलेटिन, " दादा जी, फेसबुक और मंदाकिनी “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया।
हटाएंbahut sundar panktiyaan !!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया।
हटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
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