सोमवार, 15 फ़रवरी 2010

दुश्मन




मिलते हैं यहाँ दुश्मन, हमसाज़ नहीं मिलते
जो दोस्त हैं उनके भी अंदाज़ नहीं मिलते

ये ज़ुल्मो-सितम कैसे मिट पाएँगे दुनिया से
बुजदिल हैं सभी चेहरे जांबाज़ नहीं मिलते

जख्मी है बदन अपना ये रूह भी जख्मी है
हाल अपना बताने को अल्फाज़ नहीं मिलते

कोई भी किसी से अब कुछ भी नहीं कहता है
इंसानों की बस्ती में हमराज़ नहीं मिलते

उलझन से, मुसीबत से, अब हुस्न के जलवों में
नखरे नहीं मिलते हैं, वो नाज़ नहीं मिलते.



(चित्र गूगल सर्च से साभार)

सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

न समझो कि खुद से जुदा कर रहे हैं

दुआ कर रहे हैं, विदा कर रहे हैं
न समझो कि खुद से जुदा कर रहे हैं

सफल जिंदगानी जियो तुम हमेशा
खुदा से यही इल्तिजा कर रहे हैं

जो फूलों से माली का रिश्ता चमन में
वही फर्ज़ हम भी अदा कर रहे हैं

खिलाओ चमन को तुम अपने गुणों से
यही कामना हम सदा कर रहे हैं

अधूरी तमन्ना कोई रह न जाए
सभी रात दिन आसरा कर रहे हैं

बुलंदी मिले तुम को आकाश जितनी
रुकें ना कदम, कामना कर रहे हैं

तुम्हें हम ने सींचा, संवारा, सजाया
सजल नैन से अब विदा कर रहे हैं