जवां दिलों में कहीं हौसला नहीं है क्यों
मेरे वतन में कोई रहनुमा नहीं है क्यों
चमन को सींच रहा है लहू से जो माली
उसे चमन में कहीं आसरा नहीं है क्यों
हजारों बोझ तले क्यों सिसकता है बचपन
वो खुल के हंसता, कभी खेलता नहीं है क्यों
हमेशा उसने भरे हैं अमीर के खलिहान
मगर गरीब को दाना मिला नहीं है क्यों
कभी चमन की फिज़ा घोंसलों से थी गुलज़ार
किसी भी शाख पे अब घोंसला नहीं है क्यों
कई करोड़ हैं मन्दिर, जगह जगह पूजन
किसी के दिल में मगर आस्था नहीं है क्यों
(चित्र गूगल सर्च से साभार)