घुटन है, पीर है, कुंठा है, यातनाएं हैं
मुहब्बतें हैं कहाँ, अब तो वासनाएं हैं
जमाना जब भी कोई धुन बजाने लगता है
थिरकने लगतीं उसी ताल पर फिजाएं हैं
नजर लगाने की खातिर हैं नेकियाँ आईं
उतारने को नजर आ गईं बलाएं हैं
जमीन अब भी है प्यासी किसी हिरन की तरह
पराग बाँट रही हैं, परोपकारी हैं
कली कली के दिलों में बसी वफाएं हैं
जमीन अब भी है प्यासी किसी हिरन की तरह
फलक पे झूम रहीं सांवली घटाएं हैं
उड़न खटोले की मानिंद उड़ रहे बादल
बरस भी जाएं हर इक लब पे यह दुआएं हैं
मचल मचल के चले जब कभी यहाँ पुरवा
गुमान होता है जैसे तेरी सदाएं हैं
ये बिजलियों की चमक के भी क्या नजारे हैं
पहन के हार चली जैसे दस दिशाएं हैंपड़े जो बूँद तो सोंधी महक धरा से उठे
हसीन रुत की निराली यही अदाएं हैं
(चित्र गूगल सर्च से साभार )
(चित्र गूगल सर्च से साभार )
मचल मचल के चले जब कभी यहाँ पुरवा
जवाब देंहटाएंगुमान होता है जैसे तेरी सदाएं हैं
सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई
बहुत खूब !! अच्छे शेर .... बढ़िया ग़ज़ल !!!
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरती से आपने गज़ल कही है...बहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंनजर लगाने की खातिर हैं नेकियाँ आईं
जवाब देंहटाएंउतारने को नजर आ गईं बलाएं हैं
bahuk khoob
पूरी गजल ही काबिले-तारीफ है. धीरे-धीरे आपकी गजलों में आपका लहजा अपनी पहचान बनाता जा रहा है. किसी रचनाकार के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि है अगर उसके लेखन-भाषा-शैली भी उसकी पहचान का माध्यम बन जाएँ.
जवाब देंहटाएंमेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं ही लेकिन एक बात मैं जरूर कहना चाहूँगा--- अभी आपने सफर का आगाज़ किया है, रास्ता बहुत लम्बा है और मंजिल तभी मिलेगी जब बेहद मशक्कत करेंगी आप. अगर साहित्य में स्थान बनाना है तो यह याद रखना होगा. अगर टाइम पास है, फिर कोई बात नहीं.
kya baat hai archana ji...
जवाब देंहटाएंaapne to bilkul sahi baat ki hai..
amazing composition.....
एक बहुत ही उम्दा और दिल को छूने वाली गज़ल्………………हर शेर बेहतरीन्।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइसे पढकर दो पंक्तियां याद आ गई
जवाब देंहटाएंनफ़रत की तो गिन लेते हैं, रुपया आना पाई लोग,
ढ़ाई आखर कहने वाले, मिले न हमको ढ़ाई लोग।
acchi rachna ...
जवाब देंहटाएंखरी खरी!
जवाब देंहटाएंBhawanaon ko sah arthon men shabd dye ha aapne ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको
जवाब देंहटाएंEk sarthak gazal.
जवाब देंहटाएंaapne aisi bhookh ki aur ishra kiya hai jo janwar ki ho gai
जवाब देंहटाएंआपकी यही गजल तो तरही मुशायरे वाले ब्लॉग पर भी लगी है. वहाँ टिप्पणी देने में कठिनाई हो रही थी लेकिन यहाँ आसानी है. आप की पुरानी पोस्ट भी देखीं. आप तो बहुत अच्छा लिखती हैं और आपके विषय भी बहुत दमदार होते हैं. आप महिला लेखिकाओं में अपनी अलग पहचान बना रही हैं, आपने ध्यान दिया, आपकी रचनाओं में अन्य लोगों की तरह रोमांस नहीं होता और यही आपको औरों से अलग करता है.
जवाब देंहटाएंसुबीर जी के ब्लॉग पर जितनी अच्छी लगी उतनी ही अच्छी ये ग़ज़ल यहाँ भी लगी...बेहतरीन चीज़ की येही तो खूबी है हर कहीं अच्छी लगती है...लिखती रहिये...
जवाब देंहटाएंनीरज
maza aa gaya aaki kavita pad kar,,
जवाब देंहटाएंbahut hi khoob,,,,,
Meri Nayi Kavita par aapke Comments ka intzar rahega.....
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अर्चना जी . एक मुकम्मल गजल पढ़कर मन प्रसन्न हो गया ।
जवाब देंहटाएंलाजवाब ।
archana ji bahut sundar prastuti badhai
जवाब देंहटाएंनजर लगाने की खातिर हैं नेकियाँ आईं
जवाब देंहटाएंउतारने को नजर आ गईं बलाएं हैं
वाह....
अर्चना जी, तरही में शामिल...
बेहतरीन ग़ज़लों में से एक है आपका कलाम.
waah waah waah
जवाब देंहटाएंkya khoob likha hai .. mujhe to saare hi sher pasand aaye . gazal bahut behatreen ban padhi hai .. badhayi
आपसे निवेदन है की आप मेरी नयी कविता " मोरे सजनवा" जरुर पढ़े और अपनी अमूल्य राय देवे...
http://poemsofvijay.blogspot.com/2010/08/blog-post_21.html
घुटन है, पीर है, कुंठा है, यातनाएं हैं
जवाब देंहटाएंमुहब्बतें हैं कहाँ, अब तो वासनाएं हैं
..वाह!