एक आदमी अपने अंतर की सुनता है
एक आदमी भीड़ की सुनता है
भीड़ की सुनने में, उसके जैसा करने में भय नहीं रहता
भय नहीं रहता क्योंकि कोई जिम्मेदारी नहीं लेनी पड़ती
जो भीड़ करे, करो
जो भीड़ कहे, कहो
जो भीड़ सुने, सुनो
लेकिन जो आदमी अपने अंतर की सुनता है, गुनता है
उसे अपने कहने, करने की जिम्मेदारी लेनी पड़ती है
वह सही साबित होता है तो कभी-कभी गलत भी
गलत उस मायने में कि वह भीड़ को नकार देता है
गलत उस मायने में कि 'सभी तो कर रहे हैं' के चलते नियम को नकार देता है
वह नहीं लेता लाभ
जो ले रहे होते हैं 'सभी'
वह हर कृत्य को तौलता है
वह असफल हो सकता है
लेकिन भीड़
भीड़ तो वह करती है, जो उससे करवाया जाता है, उकसाया जाता है
हाँ, वह सफल होती है
राह चलते किसी को पीटने में, तोड़ने में
या ढहाने में
तो हे! वीरों यह न कहो
यह न कहो कि भीड़ जो करती है, कहती है, चुनती है, वह सही होता है
क्योंकि पता है ना, कि भीड़ कौरव भी होती है?
हाँ, जनतंत्र है यह
जिसके मत का सम्मान होना चाहिए
न कि भीड़तंत्र के
न कि किसी ऐसे राजतंत्र के
जहाँ 'टका सेर' है सब कुछ
एक 'ज्ञानी' भी, एक 'अपराधी' भी
हे! भद्र जनों विचार करो
'जन' हो तुम जनतंत्र के
न कि किसी अंधेर नगरी के गोवर्धनदास...
एक आदमी भीड़ की सुनता है
भीड़ की सुनने में, उसके जैसा करने में भय नहीं रहता
भय नहीं रहता क्योंकि कोई जिम्मेदारी नहीं लेनी पड़ती
जो भीड़ करे, करो
जो भीड़ कहे, कहो
जो भीड़ सुने, सुनो
लेकिन जो आदमी अपने अंतर की सुनता है, गुनता है
उसे अपने कहने, करने की जिम्मेदारी लेनी पड़ती है
वह सही साबित होता है तो कभी-कभी गलत भी
गलत उस मायने में कि वह भीड़ को नकार देता है
गलत उस मायने में कि 'सभी तो कर रहे हैं' के चलते नियम को नकार देता है
वह नहीं लेता लाभ
जो ले रहे होते हैं 'सभी'
वह हर कृत्य को तौलता है
वह असफल हो सकता है
लेकिन भीड़
भीड़ तो वह करती है, जो उससे करवाया जाता है, उकसाया जाता है
हाँ, वह सफल होती है
राह चलते किसी को पीटने में, तोड़ने में
या ढहाने में
तो हे! वीरों यह न कहो
यह न कहो कि भीड़ जो करती है, कहती है, चुनती है, वह सही होता है
क्योंकि पता है ना, कि भीड़ कौरव भी होती है?
हाँ, जनतंत्र है यह
जिसके मत का सम्मान होना चाहिए
न कि भीड़तंत्र के
न कि किसी ऐसे राजतंत्र के
जहाँ 'टका सेर' है सब कुछ
एक 'ज्ञानी' भी, एक 'अपराधी' भी
हे! भद्र जनों विचार करो
'जन' हो तुम जनतंत्र के
न कि किसी अंधेर नगरी के गोवर्धनदास...
भीडतंत्र का सही मनोविज्ञान
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 122वीं जयंती - राम प्रसाद 'बिस्मिल' और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंभीड़ तन्त्र के मनोविज्ञान को कहती रचना ... बहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएं