जवां दिलों में कहीं हौसला नहीं है क्यों
मेरे वतन में कोई रहनुमा नहीं है क्यों
चमन को सींच रहा है लहू से जो माली
उसे चमन में कहीं आसरा नहीं है क्यों
हजारों बोझ तले क्यों सिसकता है बचपन
वो खुल के हंसता, कभी खेलता नहीं है क्यों
हमेशा उसने भरे हैं अमीर के खलिहान
मगर गरीब को दाना मिला नहीं है क्यों
कभी चमन की फिज़ा घोंसलों से थी गुलज़ार
किसी भी शाख पे अब घोंसला नहीं है क्यों
कई करोड़ हैं मन्दिर, जगह जगह पूजन
किसी के दिल में मगर आस्था नहीं है क्यों
(चित्र गूगल सर्च से साभार)
बहुत सुंदर प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत गजल
जवाब देंहटाएंअर्चना जी बहुत बढ़िया लिखा है आपने
जवाब देंहटाएंपढ़ कर मज़ा आ गया
ये शेर तो खास पसंद आया
हजारों बोझ तले क्यों सिसकता है बचपन
वो खुल के हंसता, कभी खेलता नहीं है क्यों
एक शेर के रदीफ मे दिक्कत हो रही है काफिया पलट गया है और रदीफ की जगह पहुच गया है
(मुझे लग रहा है टाईपिंग करते समय भूल हुई है कृपया सुधार करें )
मगर गरीब को दाना नहीं मिला है क्यों
को
मगर गरीब को दाना मिला नहीं है क्यों
करें
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंअति उत्तम
जवाब देंहटाएंकभी चमन की फिजा घोंसलों से थी गुलज़ार
जवाब देंहटाएंकिसी भी शाख पे अब घोंसला नहीं है, क्यों
ग़ज़ल के सभी शेर लाजवाब हैं....ये खास तौर पर पसंद आया.
मुझे भी बहुत पसंद आयी ग़ज़ल लेकिन ज्यादा समझ नहीं शायद वीनस भाई का सुझाव भी ध्यान देने योग्य है..
जवाब देंहटाएंचमन को सींच रहा है लहू से जो माली
जवाब देंहटाएंउसे चमन में कहीं आसरा नहीं है क्यों
माली को किसने आसरा दिया है भला
बहुत बढिया
बेहतरीन !!
जवाब देंहटाएंहजारों बोझ तले क्यों सिसकता है बचपन
जवाब देंहटाएंवो खुल के हंसता, कभी खेलता नहीं है क्यों
-सभी शेर एक से बढ़कर एक!! बधाई!
चमन को सींच रहा है लहू से जो माली
जवाब देंहटाएंउसे चमन में कहीं आसरा नहीं है क्यों
कई करोड़ हैं मन्दिर, जगह जगह पूजन
किसी के दिल में मगर आस्था नहीं है क्यों
लाजवाब ! बहुत सुन्दर पंक्तियाँ और बेहतरीन अभिव्यक्ति ...
behtareen ghazal hui hai ... sare sher pasand aaye..
जवाब देंहटाएंअर्चना जी, आपने ये मुद्दे की बात कही है.
जवाब देंहटाएंजवां दिलों में कहीं हौसला नहीं है क्यों
मेरे वतन में कोई रहनुमा नहीं है क्यों
...आज युवाओं में उच्च राजनैतिक सोच का अभाव है. जबकि वे ही कर्णधार हैं.
सबसे पहले निवेदन है कि वीनस केसरी जी ने जो सुझाव दिया है, कृपया उसका पालन करें, टाइप में ऐसी गलतियाँ हो जाती हैं.
जवाब देंहटाएंगजल आपने बेहद शानदार लिखी , बहुत सी प्रशंसाएं देख भी रहा हूँ. कुछ लोग जल मरे भी होंगे, शायद मैं भी.
सर जी आप भी अच्छा मज़ाक कर लेते हो...आप भला मुझ जैसी नवसिखिये से क्यूँ जलेंगे
जवाब देंहटाएंBAHUT ACHI RACHNA
जवाब देंहटाएंवीनस जी सुझाव देने का शुक्रिया
जवाब देंहटाएंहजारों बोझ तले क्यों सिसकता है बचपन
जवाब देंहटाएंवो खुल के हंसता, कभी खेलता नहीं है क्यों
ये भी और आखरी वाला शेर भी कमाल क है ... बहुत कुछ पूछता है इस व्यवस्था से ...
कई करोड़ हैं मन्दिर, जगह जगह पूजन
जवाब देंहटाएंकिसी के दिल में मगर आस्था नहीं है क्यों,
अर्चना जी मुझे याद नही शायद पहले आपकी रचनाओं को पढ़ा हूँ की नही पर आज की प्रस्तुति बहुत बढ़िया लगी..आज की यह समाज आपके इस क्यों प्रश्न का उत्तर देने में असमर्थ है क्योंकि प्रश्न भी समाज ने ही खड़ा किया है...एक सुंदर और भावपूर्ण रचना..धन्यवाद अर्चना जी
बहुत उम्दा ग़ज़ल....एक एक शेर बहुत कुछ कह गया....
जवाब देंहटाएंAchook!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति ......
जवाब देंहटाएंwow bahut khub
जवाब देंहटाएंHello,
जवाब देंहटाएंThis is one of your best compositions.
Keep up your great work!
Cheers!
Surender.
बहुत खूब----पेश है...
जवाब देंहटाएंरोटी से जुडी थी आस्था जब तक ।
आस्था से जुडी थी रोटी जब तक ।
आस्थाहीन रोटी पर जबतक रहेगी नज़र ’
दाने दाने को रहेंगे हम बेहाल तब तक॥
अर्चना जी ! लाजबाव लिखा है ।
जवाब देंहटाएंवाह... संवेदी रचना... साधुवाद..
जवाब देंहटाएंकई करोड़ हैं मन्दिर, जगह जगह पूजन
जवाब देंहटाएंकिसी के दिल में मगर आस्था नहीं है क्यों
ये खास तौर पर पसंद आया.
...बेहतरीन रचना/गजल !!!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी गजल है आपकी है।
जवाब देंहटाएंकित्ता अच्छा लिखा आपने ..ढेर सारी बधाई व प्यार !!
जवाब देंहटाएं_____________
और हाँ, 'पाखी की दुनिया' में साइंस सिटी की सैर करने जरुर आइयेगा !
देर हुई आने में , इन दिनों व्यस्तता अधिक रहती है ..
जवाब देंहटाएंहर शेर एक एक त्रासदी को बयान कर रहा है ..
पहला - दिशाहीन , आशाहीन युवा पीढ़ी की त्रासदी .
दूसरा - देश की ..
तीसरा - बचपन की ..
चौथा - गरीबी की ..
पांचवां - दूसरे शेर की ही त्रासदी को दिखाता , दूसरी तरह से ..
छठा - अनास्था की ..
----------
इस प्रकार एक मुकम्मल होती गजल ! आभार !
जिंदगी की तल्ख सच्चाईयों को गजल में इतनी खूबसूरती से कम लोग ही बयां कर पाते हैं।
जवाब देंहटाएं--------
क्या आप जवान रहना चाहते हैं?
ढ़ाक कहो टेसू कहो या फिर कहो पलाश...
यह बहुत अच्छी सोच और प्रयास है. "कभी चमन की फिज़ा घोंसलों से थी गुलज़ार....किसी भी शाख पे अब घोंसला नहीं है क्यों "...पंतियाँ बहुत छू लेने वाली हैं.....
जवाब देंहटाएंप्रिय अर्चना जी,
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना के लिए बधाई
" चमन को सींच .......आसरा नहीं हैं क्यों " पंक्ति इस रचना का सार लगी , बहुत संवेदनशील रचनाये लिखती हैं आप , वैसे लड़किओं में ये जन्मजात गुण होता ही हैं ,
-
!! श्री हरि : !!
बापूजी की कृपा आप पर सदा बनी रहे
Email:virender.zte@gmail.com
Blog:saralkumar.blogspot.com
कई करोड़ हैं मन्दिर, जगह जगह पूजन
जवाब देंहटाएंकिसी के दिल में मगर आस्था नहीं है क्यों
बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल...हर शेर लाजवाब है...बधाई
नीरज
archana ji
जवाब देंहटाएंsirf waah waah hi kahunga .. saari gazale padhi aapki , lekin mujhe kuch jyaada hi acchi lagi .. dil se badhayi kabool kare..
कई करोड़ हैं मन्दिर, जगह जगह पूजन
किसी के दिल में मगर आस्था नहीं है क्यों
ye ulti mate hai ji
archana ji ,itna sanvedansheel likhti ho aap , ek acchi si kavita bhi likhe
चमन को सींच रहा है लहू से जो माली
जवाब देंहटाएंउसे चमन में कहीं आसरा नहीं है क्यों
बहुत अच्छी गजल है आपकी है। nice creation, congrates..