बुधवार, 30 नवंबर 2016

तुम हो...

तुम सिर्फ़ अपने नाम तक सीमित नहीं हो
तुम सिर्फ़ अपने सम्मान तक सीमित नहीं हो
तुम सिर्फ़ अपने गान तक भी सीमित नहीं हो
तुम बिखरे पड़े हो
नदी, पहाड़, जंगल, खाड़ी, सागर, मैदान, रेगिस्तान में 
तुम समाए हुए हो
हर दिल, हर धड़कन, हर नब्ज़ में
तुम समाए हुए हो हर आवाज़ में, हर इंकलाब में
तुम शब्द नहीं
जिसे सिर्फ़ तेरह पंक्तियों में समेटा जाय
तुम पल नहीं
जिसे सिर्फ़ बावन सेकेण्ड तक महसूसा जाय
तुम रंग नहीं
जिसे सिर्फ़ तीन रंगों में रंगा जाय
और तुम कोई आदेश भी नहीं
जिसे थोपा जाय
तुम असीमित हो, तुम अपरिभाषित हो
तुम अकथनीय हो, तुम बेरंग हो
तुम देश हो
कोई सामान नहीं हो...
-अर्चना