रविवार, 9 दिसंबर 2018

क्या दीवार हो तुम?

कुछ देखो-सुनो, तो बोलो
कि तुम नहीं हो कोई दीवार
जो जकड़ी होती है
सीमेंट से, बालू से
ताकि ढह ना जाए।

या तुम भी जकड़े हुए हो
ऐसे ही सीमेंट से, बालू से
कि ढह जाओगे
भरभराकर?

तुम बोलो
कि तुम नहीं हो कोई दीवार
जिनमें पड़े होते हैं
लोहे के सरिये
ताकि ढह ना जाए।

या तुम्हारे अंदर भी पड़े हैं
लोहे के सरियों का जाल
कि ढह जाओगे
भरभराकर?

तुम बोलो
कि तुम नहीं हो कोई दीवार
जो चुनी होती हैं सख्त ईंटों से
ताकि ढह ना जाए।

या तुम भी चुने गए हो
सख्त ईंटों से
कि ढह जाओगे
भरभराकर?

हाँ, यह सच है कि
तुम भी जकड़े हुए हो
लेकिन
माँस से चर्म से
तुम्हारे अंदर भी है जाल
लेकिन
खून से भरी नसों का
तुम्हारे अंदर भी चुने हुए हैं
लेकिन
मस्तिष्क, हृदय, यकृत, गुर्दे
जैसे तमाम अंग
और
इन सबसे मिलता है तुम्हारे अंदर कुछ अलग
यानी
तुम्हारे जीवित होने का प्रमाण।

कहो, क्या तुम हो कोई दीवार?
जो ढह जाओगे भरभराकर?

रविवार, 4 नवंबर 2018

मैं, सोच रहा हूँ

मैं, नर्मदा पर खड़ा सोच रहा हूँ
अब लोग मेरे जिस्म को छू सकेंगे
लेकिन क्या इन फौलादी ऊँचाईयों पर
उनके एहसास भी मुझको छू सकेंगे?
मैं सोच रहा हूँ
रियासतों का एकीकरण किया था लेकिन
क्या सियासतों का एकीकरण कर सकूँगा?
प्रतीक बना हूँ एकता का
क्या नफरतों को खंडित कर सकूँगा?
मैं, नर्मदा पर खड़ा सोच रहा हूँ
लौहपुरुष था, पर लोहे का नहीं था मैं।

मंगलवार, 19 जून 2018

भीड़

भीड़
भीड़ की न कोई चेतना होती है
न ही कोई विचार
भीड़ बस भीड़ होती है
भीड़ एक ही समय में दो जगह होती है
भीड़ पक्ष में होती है
भीड़ विपक्ष में होती है
भीड़ किसी की नहीं होती
भीड़ बस भीड़ होती है
भीड़ एक पल में प्रतिष्ठित करती है
भीड़ एक पल में धूल-धूसरित करती है
भीड़ बस भीड़ होती है
भीड़ सुनती नहीं
भीड़ देखती नहीं
भीड़ कुछ कहती नहीं
भीड़ चाटुकार है
भीड़ अहंकार है
भीड़ दबाव है
भीड़ फरमान है
भीड़ सम्मान नहीं
भीड़ स्वाभिमान नहीं
भीड़ दोस्त नहीं
भीड़ जिंदा इंसान नहीं
भीड़ कोई पुरस्कार नहीं
भीड़ का कोई सरोकार नहीं
भीड़ बस भीड़ होती है