![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgrI_nkE88FrD1Gc4eFh_DGICzmwkW9Shg3bQ8ak7DEcbY7zkNQO4qT6BeHfodU7cyftJzDudbXJf713ug0PN2EWJw27TQtYv_9x3zK5BBp6aE0UmJB-pJt-208kkW0rGYGvO572IegD9k/s400/Tomorrow_by_SadGirl311.jpg)
इक शाम तनहा ढलने को है
इक सुबह से सूरज मिलने को है
वक्त के पाटे पर तार-तार हुए
इक रूह नए कपड़े सिलने को है
समंदर के तूफानों से गुजर आई
इक कागज़ की कश्ती गलने को है
चिता की लपटों की गरमी पाकर
जज्बातों की बर्फ पिघलने को है
अश्कों की बारिश में भीगकर
दिल का मैल अब धुलने को है
जन्मों के सांचे में ढली मोम से
इक शमा नई शब् में जलने को है
(चित्र गूगल सर्च से साभार)