रविवार, 26 जुलाई 2009

इक शाम तनहा ढलने को है




इक शाम तनहा ढलने को है
इक सुबह से सूरज मिलने को है

वक्त के पाटे पर तार-तार हुए
इक रूह नए कपड़े सिलने को है

समंदर के तूफानों से गुजर आई
इक कागज़ की कश्ती
गलने को है

चिता की लपटों की गरमी पाकर
जज्बातों की बर्फ पिघलने को है

अश्कों की बारिश में भीगकर
दिल का मैल अब धुलने को है

जन्मों के सांचे में ढली मोम से
इक शमा नई शब् में जलने को है



(चित्र गूगल सर्च से साभार)

बुधवार, 22 जुलाई 2009

राहें



कहती हैं लम्बी सूनसान राहें
हर पल राहों पे आते-जाते
दिखाती हूँ भटकते मुसाफिरों को
मंजिल का रास्ता
करके खुद की गुमराह राहें
कहती हैं लम्बी सूनसान राहें

साथ देती हूँ राही का हर मोड़ पे
पर वो भूल जातें हैं
खुद की मंजिलों को पा के
कहती हैं लम्बी सूनसान राहें

शिकवा नहीं है किसी से
ना कोई गिला है
पर क्या कोई चलेगा
ता उम्र साथ उसके
कहती हैं लम्बी सूनसान राहें



(चित्र गूगल सर्च से साभार )

गुरुवार, 9 जुलाई 2009

सावन के बहाने ...


सावन के बहाने अश्कों को हम बहा आए
आसमां से दर्द का इक रिश्ता निबहा आए

सुलगते अरमानों को धुआं बनाकर
घटाओं के परिंदों को हम उड़ा आए

अश्कों की बूंदों से नमी को जब्ज कर
बादलों के दिल की आब पाशी करा आए

जज्बा-ए-दिल की शमा को पिघलाकर
बरसते सावन में दर्द को हम घुला आए

सूखे पत्तों से झड़ गए वो लम्हे उल्फत के
उन लम्हों की यादों को किताबों में दबा आए

खूने दिल के कतरों से सियाही लेकर
दास्ताने दर्द की इक ग़ज़ल हम बना आए


(चित्र गूगल सर्च से साभार )

रविवार, 5 जुलाई 2009

शब्-ए-खामोश


शब्--तनहा महफ़िल में
छाई जैसे कोई ग़मी सी है

सबा के आँचल में जब्ज
आज थोड़ी नमी सी है


कुमुदनी के रुखसारों पे
इक बूँद शबनमी सी है

बादलों के आगोश में गुम
आज चांदनी धुंधली सी है


रुत की खामोशियों में
इक ग़ज़ल की कमी सी है



(चित्र गूगल सर्च से साभार)