गुरुवार, 22 अगस्त 2019

उसकी याद

अब भी याद आती है
वह।
जब रोते-रोते हिचकी बंध जाती
वह पास आकर पुचकारती
कभी बाँहों में भरकर
ढाढस बँधाती, सहलाती।

अब भी याद आती है
वह।
घर से दूर रहने पर
उसका ही साथ संबल देता
उसके स्पर्श की गर्माहट
कुछ पहचानी सी लगती
अनजानों में एक वही तो
अपनी सी लगती।

अब भी याद आती है
वह।
किसी विद्यालय में
कक्षा के बाहर, नल के पास,
शौचालय के दरवाज़े पर
ठीक उसी तरह
किसी बच्चे को
पुचकारती, ढाढस बँधाती, दुलारती
कपड़ों की मैल धुलवाती
एकदम वैसी ही
कोई ‘आया माँ’

क्या सचमुच तुमको
अब भी याद आती है
वह
तुम्हारी 'आया माँ'?

गुरुवार, 15 अगस्त 2019

तुम देशद्रोही हो!

क्या?
तुम प्रश्न करते हो?
तुम देशद्रोही हो!

तुम नमन नहीं सलाम करते हो?
तुम देशद्रोही हो!

तुम सूरज की जगह चाँद देखते हो?
तुम देशद्रोही हो!

तुम गाय को नहीं बच्चे को बचाते हो?
तुम देशद्रोही हो!

तुम राम नहीं ईश्वर कहते हो?
तुम देशद्रोही हो!

तुम जय भारत नहीं जय हिंद कहते हो?
तुम देशद्रोही हो!

तुम गाय का नहीं भैंस का दूध पीते हो?
तुम देशद्रोही हो!

तुम बधाई नहीं मुबारक़बाद देते हो?
तुम देशद्रोही हो!

तुम वंदे मातरम् नहीं वसुधैव कुटुंबकम् कहते हो?
तुम देशद्रोही हो!

तुम खून नहीं अमन कहते हो?
तुम देशद्रोही हो!

तुम बलकरन के साथ हामिद को भी पोषते हो?
तुम देशद्रोही हो!

तुम केसर नहीं धान उगाते हो?
तुम देशद्रोही हो!

तुम तंत्र नहीं लोक चाहते हो?
तुम देशद्रोही हो!

तुम पुराण नहीं संविधान पढ़ते हो?
तुम देशद्रोही हो!
तुम देशद्रोही हो! तुम पाकिस्तान से हो!

शनिवार, 3 अगस्त 2019

मायने

लिखें तो क्या लिखें
हँसी लिखें, खुशी लिखें
या कि लिखें दर्द?
या वो लिखें जो आता है नज़र?
लेकिन, जो नज़र आता है उसे लिखा जाता है क्या?
लिखा जाता है तो पढ़ा जाता है क्या?
पढ़ा जाता है तो समझा जाता है क्या?
समझे जाने पर परिवर्तन आता है क्या?
फिर भी लिखा तो जाता ही है ना
क्योंकि
लिखा जाना आवश्यक है
लिखा जाना पर्याय है
पहचान का, नाम का
क्या इतना काफ़ी नहीं है
लिखे जाने के लिए?


हाँ,  लिखे जाने के अब यही मायने हैं!
बाकी सब बेमाने...