मंगलवार, 20 जुलाई 2010

दोस्तों की आस्तीनों में छुपे हैं नाग अब


दोस्तों की आस्तीनों में छुपे हैं नाग अब
रहनुमा, रहज़न बने हैं, इनसे बच कर भाग अब

गांव, बस्ती, शहर, क़स्बा, देश का हर भाग अब
जल चुका है, क्या बुझेगी नफरतों की आग अब

भूख, बेकारी, गरीबी और बे तालीम लोग
कब तलक ये दुःख सहें हम, क्यों न जाएँ जाग अब

जो पड़ोसी गा रहा है, आप भी वो गाइए
तीर जैसा चुभ रहा है शांति वाला राग अब

आरियाँ ही चल रही है सब्ज़ बागों पर यहाँ
सारे पंछी जा चुके हैं बस बचे हैं काग अब

गालियाँ, बेहूदे जुमले, बदतमीजी और नाच
कौन फागुन में यहाँ पर गा रहा है फाग अब


शांत साहिल देख कर किस को पता चल पाएगा
ज्वार सागर पर चढ़ा था, कह रहे हैं झाग अब


(चित्र गूगल सर्च से साभार)