रविवार, 28 नवंबर 2010

ज्ञान के दीप जला कर देखो



कर्म को देव बना कर देखो 
सत्य के मार्ग पे जा कर देखो 

साथ में होंगे करोड़ों इक दिन 
पाँव तो पहले बढ़ा कर देखो 

सारे इंसान हैं इस दुनिया में 
सरहदें अपनी मिटा कर देखो 

क्या है नफरत, ये अदावत क्या है 
प्रेम का राग तो गा कर देखो 

मंजिलें साफ़ नज़र आएंगी 
ज्ञान के दीप जला कर देखो




बुधवार, 25 अगस्त 2010

फ़न से किस का रिश्ता है





कौन यहाँ अब पूछे फ़न को,आज कहाँ यह दिखता है
नाम बिके हैं महफ़िल-महफ़िल, फ़न  से किस का रिश्ता है

जोंक बनें हैं आज चिकित्सक ,खून सभी का चूसे हैं
उनके दवाखानों में भी नित, मौत का तांडव होता है

खेल, खिलाड़ी, अभिनेता को, लोग बिठाते सर-माथे
वीर जवानों की कुर्बानी, मोल बहुत ही सस्ता है

चावल, गेहूँ, सब्जी, दालें, गायब हो गए थाली से
दाम गिरे मोबाइल, सिम के,पेट क्या इनसे भरता है

शांति, सुरक्षा, खुशहाली का राज तो अब इक सपना है
पाप पले अब थानों में आतंक पुलिस का रहता है


(चित्र गूगल सर्च से साभार )

मंगलवार, 3 अगस्त 2010

मुहब्बतें हैं कहाँ, अब तो वासनाएं हैं



घुटन है, पीर है, कुंठा है, यातनाएं हैं
मुहब्बतें हैं कहाँ, अब तो वासनाएं हैं

जमाना जब भी कोई धुन बजाने लगता है
थिरकने लगतीं उसी ताल पर फिजाएं हैं

नजर लगाने की खातिर हैं नेकियाँ आईं
उतारने को नजर आ गईं बलाएं हैं

पराग बाँट रही हैं, परोपकारी हैं
कली कली के दिलों में बसी वफाएं हैं

जमीन अब भी है प्यासी किसी हिरन की तरह
फलक पे झूम रहीं सांवली घटाएं हैं

उड़न खटोले की मानिंद उड़ रहे बादल
बरस भी जाएं हर इक लब पे यह दुआएं हैं

मचल मचल के चले जब कभी यहाँ पुरवा
गुमान होता है जैसे तेरी सदाएं हैं

ये बिजलियों की चमक के भी क्या नजारे हैं
पहन के हार चली जैसे दस दिशाएं हैं

पड़े जो बूँद तो सोंधी महक धरा से उठे
हसीन रुत की निराली यही अदाएं हैं

(चित्र गूगल सर्च से साभार )

मंगलवार, 20 जुलाई 2010

दोस्तों की आस्तीनों में छुपे हैं नाग अब


दोस्तों की आस्तीनों में छुपे हैं नाग अब
रहनुमा, रहज़न बने हैं, इनसे बच कर भाग अब

गांव, बस्ती, शहर, क़स्बा, देश का हर भाग अब
जल चुका है, क्या बुझेगी नफरतों की आग अब

भूख, बेकारी, गरीबी और बे तालीम लोग
कब तलक ये दुःख सहें हम, क्यों न जाएँ जाग अब

जो पड़ोसी गा रहा है, आप भी वो गाइए
तीर जैसा चुभ रहा है शांति वाला राग अब

आरियाँ ही चल रही है सब्ज़ बागों पर यहाँ
सारे पंछी जा चुके हैं बस बचे हैं काग अब

गालियाँ, बेहूदे जुमले, बदतमीजी और नाच
कौन फागुन में यहाँ पर गा रहा है फाग अब


शांत साहिल देख कर किस को पता चल पाएगा
ज्वार सागर पर चढ़ा था, कह रहे हैं झाग अब


(चित्र गूगल सर्च से साभार)


सोमवार, 7 जून 2010

बस आँखों में दिखता पानी


सूखे खेत, सरोवर,झरने,बस आँखों में दिखता पानी

हाहाकार मचा है जग में,छाए मेघ न बरसा पानी।



भ्रष्टाचार के दलदल में अब,अपना देश धंसा है पूरा

कौन उबारे, सबके तन में ठंडा खून रगों का पानी।



अब रक्षक को भक्षक कहिए,कलियां रौंद रहे है माली

लोग तमाशा देख रहे हैं,किसकी आंख से छलका पानी।



खेती किस किस से जूझेगी,किसका किसका हल ढूंढेगी

एक साथ इतने संकट हैं,आंधी,बिजली,सूखा,पानी।



प्रेम वचन शीतल वानी है जिससे पीर मिटे सब मन की

सूखे, झुलसे तरू के तन की जैसे प्यास बुझाता पानी।




(चित्र गूगल सर्च सर साभार )


बुधवार, 26 मई 2010

किसी भी शाख पे अब घोंसला नहीं है क्यों ?


जवां दिलों में कहीं हौसला नहीं है क्यों

मेरे वतन में कोई रहनुमा नहीं है क्यों


चमन को सींच रहा है लहू से जो माली

उसे चमन में कहीं आसरा नहीं है क्यों


हजारों बोझ तले क्यों सिसकता है बचपन

वो खुल के हंसता, कभी खेलता नहीं है क्यों


हमेशा उसने भरे हैं अमीर के खलिहान

मगर गरीब को दाना मिला नहीं है क्यों


कभी चमन की फिज़ा घोंसलों से थी गुलज़ार

किसी भी शाख पे अब घोंसला नहीं है क्यों


कई करोड़ हैं मन्दिर, जगह जगह पूजन

किसी के दिल में मगर आस्था नहीं है क्यों


(चित्र गूगल सर्च से साभार)

सोमवार, 17 मई 2010

बाघ १४११





रहने दो आशियाँ मेरा भी

मेरी भी ईश ने रचना की


वाहन बना भवानी माँ का

हूँ बाघ शान भारत माँ की


क्यूँ मारता मुझे है मानव

क्यूँ मैं बना सभी का दोषी


गिनती हजार की है केवल

संख्या बहुत बची कम मेरी


अस्तित्व गर मिटाया मेरा

हो जाएगी समाप्त सृष्टी


हैं ये हरे वसन धरती के

मत काट तन सघन वन शाखी



(चित्र गूगल सर्च से साभार)

रविवार, 9 मई 2010

तेरे आंचल में माँ



आप सभी को मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ !!

यह ग़ज़ल मैं अपनी माँ के चरणों में समर्पित कर रही हूँ ,

वो अब इस दुनिया में नहीं हैं , फिर भी हमेशा मेरे साथ हैं "माँ"



सारे जहाँ भर का सुकूं मिलता तेरे आंचल में माँ

जब गम सताएं सैकड़ों, लिपटा तेरे आंचल में माँ


दौड़ी मेरी सुन आह माँ घायल हुआ मैं जब कभी

बाहों में तू ने ले लिया, सिमटा तेरे आंचल में माँ


उंगली पकड़ तेरी चला, बचपन हुआ मेरा जवां

लेकिन अभी तक ढूंढता, ममता तेरे आंचल में माँ


माँ, सिर्फ माँ, मैं ने कहा, जब बोलना आया मुझे

मैं ने झरोखा स्वर्ग का देखा तेरे आंचल में माँ


साथी नहीं कोई मेरा, जाऊं कहाँ, ढूंढूं किसे

इच्छा है तेरी गोद की, रहता तेरे आंचल में माँ


गम घेरते हैं अब मुझे, मुझ से सहा जाता नहीं

तू पास होती गर मेरे, सोता तेरे आंचल में माँ



(चित्र गूगल सर्च से साभार )

सोमवार, 15 फ़रवरी 2010

दुश्मन




मिलते हैं यहाँ दुश्मन, हमसाज़ नहीं मिलते
जो दोस्त हैं उनके भी अंदाज़ नहीं मिलते

ये ज़ुल्मो-सितम कैसे मिट पाएँगे दुनिया से
बुजदिल हैं सभी चेहरे जांबाज़ नहीं मिलते

जख्मी है बदन अपना ये रूह भी जख्मी है
हाल अपना बताने को अल्फाज़ नहीं मिलते

कोई भी किसी से अब कुछ भी नहीं कहता है
इंसानों की बस्ती में हमराज़ नहीं मिलते

उलझन से, मुसीबत से, अब हुस्न के जलवों में
नखरे नहीं मिलते हैं, वो नाज़ नहीं मिलते.



(चित्र गूगल सर्च से साभार)

सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

न समझो कि खुद से जुदा कर रहे हैं

दुआ कर रहे हैं, विदा कर रहे हैं
न समझो कि खुद से जुदा कर रहे हैं

सफल जिंदगानी जियो तुम हमेशा
खुदा से यही इल्तिजा कर रहे हैं

जो फूलों से माली का रिश्ता चमन में
वही फर्ज़ हम भी अदा कर रहे हैं

खिलाओ चमन को तुम अपने गुणों से
यही कामना हम सदा कर रहे हैं

अधूरी तमन्ना कोई रह न जाए
सभी रात दिन आसरा कर रहे हैं

बुलंदी मिले तुम को आकाश जितनी
रुकें ना कदम, कामना कर रहे हैं

तुम्हें हम ने सींचा, संवारा, सजाया
सजल नैन से अब विदा कर रहे हैं