सोमवार, 7 जून 2010

बस आँखों में दिखता पानी


सूखे खेत, सरोवर,झरने,बस आँखों में दिखता पानी

हाहाकार मचा है जग में,छाए मेघ न बरसा पानी।



भ्रष्टाचार के दलदल में अब,अपना देश धंसा है पूरा

कौन उबारे, सबके तन में ठंडा खून रगों का पानी।



अब रक्षक को भक्षक कहिए,कलियां रौंद रहे है माली

लोग तमाशा देख रहे हैं,किसकी आंख से छलका पानी।



खेती किस किस से जूझेगी,किसका किसका हल ढूंढेगी

एक साथ इतने संकट हैं,आंधी,बिजली,सूखा,पानी।



प्रेम वचन शीतल वानी है जिससे पीर मिटे सब मन की

सूखे, झुलसे तरू के तन की जैसे प्यास बुझाता पानी।




(चित्र गूगल सर्च सर साभार )