रविवार, 20 जून 2021

पिता जब वृद्ध होने लगे :

 पिता जब वृद्ध होने लगे थे

आहिस्ता-आहिस्ता बदलने लगे थे 

आदतें बदल गईं,  प्रयोग की वस्तुएँ भी बदल गईं थीं 

कुछ तर्कसंगत थीं तो कुछ अतार्किक भी

तन पर रहने वाले शर्ट-पैंट हैंगर पर लटक गए 

हमेशा के लिए कुर्ता-धोती स्थापित हो गए थे

जाड़े में गाउन पहनना भारी लगने लगा

रफ्फड़ ओढ़ना अधिक भाने लगा था

बाटा के चौड़े पट्टे वाले सैंडल में बढ़ते तेज कदम 

कैनवास के जूतों में थम-थम कर चलने लगे थे

पीने का पानी ताँबे के लोटे में रखते थे 

स्नान के लिए भी मग हटा लोटा रखते थे 

साबुन से स्नान कम होता था 

सरसों का तेल कभी-कभी उसका विकल्प होता था 

टूथ ब्रश, टूथ पेस्ट कोने रख दिए थे 

नीम की दातुन सुबह-सुबह लाने लगे थे

दाल, सब्जी थाली से हटा देते थे 

किसी तरह आधी रोटी दही के साथ खा लेते थे 

होठ जो कभी चुप ही नहीं होते थे

वे घंटों चुप्पी रखे रहते थे 

पहले अपनी बातों से कहीं भी महफिल जमा देते थे 

अब वे महफिल में भी अलग अनमने से रहने लगे थे

अब इन बातों को याद कर ऐसा लगता है

जैसे पिता बहुत पहले ही 

आहिस्ता-आहिस्ता इस दुनिया से नाता तोड़ने लगे थे।


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रविवार, 13 जून 2021

चलती का नाम ऑनलाइन ज़िंदगी :

 और दुनिया पीडीएफ में 

बच्चों की पुस्तक पीडीएफ में 

बच्चों को काम देना पीडीएफ में

बच्चों से काम लेना पीडीएफ में

टाइम टेबल पीडीएफ में

पाठ्यक्रम पीडीएफ में 

नाम की सूची पीडीएफ में

अंक सूची पीडीएफ में

सूचना पीडीएफ में 


देखने चलो तो मेमोरी फुल 

मोबाइल का डब्बा गुल 


सिर्फ यही नहीं


अखबार पढ़ो पीडीएफ में

पत्रिका पढ़ो पीडीएफ में 

उपन्यास पढ़ो पीडीएफ में 

पुस्तकें पढ़ो पीडीएफ में 


पढ़ने चलो तो मेमोरी फुल 

मोबाइल का डब्बा गुल 


और तो और


डाॅक्टर का पर्चा पीडीएफ में

मेडिकल रिपोर्ट पीडीएफ में 

दवाओं की सूची पीडीएफ में 

सारे बिल पीडीएफ में

ये लो

शादी का निमंत्रण पत्र भी पीडीएफ में 


अब तो ऐसा लगता है 

जैसे ज़िंदगी बंद है पीडीएफ में 

जीने चलो तो मेमोरी फुल

दिमाग का डब्बा गुल 


काश! ऐसा कुछ हो जाए

ये दुख, ये दर्द, 

ये भूख, ये बीमारी,

ये बेरोजगारी, ये लाचारी

ये भ्रष्टाचारी, ये सपने सरकारी 

 सब के सब आ जाएँ किसी पीडीएफ में 

और किसी मोबाइल की मेमोरी से हो जाएँ 

हमेशा के लिए गुल!!


- अर्चना तिवारी