कुछ लम्हे दिल के...
एक बार वक़्त से लम्हा गिरा कहीं, वहाँ दास्ताँ मिली लम्हा कहीं नहीं....गुलज़ार
रविवार, 4 दिसंबर 2016
भोर का चाँद
भोर का चाँद
अधिक देर तक नहीं दिखता
फिर भी उग आता है भोर में
शायद वह जानता है
कि इस पर उसका वश नहीं है
वश है तो केवल चलते रहने पर
वह जानता है
कि दिन में उसका अस्तित्व बेशक ना हो
पर रात पर तो उसी का एकाधिकार है...
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