पिता जब वृद्ध होने लगे थे
आहिस्ता-आहिस्ता बदलने लगे थे
आदतें बदल गईं, प्रयोग की वस्तुएँ भी बदल गईं थीं
कुछ तर्कसंगत थीं तो कुछ अतार्किक भी
तन पर रहने वाले शर्ट-पैंट हैंगर पर लटक गए
हमेशा के लिए कुर्ता-धोती स्थापित हो गए थे
जाड़े में गाउन पहनना भारी लगने लगा
रफ्फड़ ओढ़ना अधिक भाने लगा था
बाटा के चौड़े पट्टे वाले सैंडल में बढ़ते तेज कदम
कैनवास के जूतों में थम-थम कर चलने लगे थे
पीने का पानी ताँबे के लोटे में रखते थे
स्नान के लिए भी मग हटा लोटा रखते थे
साबुन से स्नान कम होता था
सरसों का तेल कभी-कभी उसका विकल्प होता था
टूथ ब्रश, टूथ पेस्ट कोने रख दिए थे
नीम की दातुन सुबह-सुबह लाने लगे थे
दाल, सब्जी थाली से हटा देते थे
किसी तरह आधी रोटी दही के साथ खा लेते थे
होठ जो कभी चुप ही नहीं होते थे
वे घंटों चुप्पी रखे रहते थे
पहले अपनी बातों से कहीं भी महफिल जमा देते थे
अब वे महफिल में भी अलग अनमने से रहने लगे थे
अब इन बातों को याद कर ऐसा लगता है
जैसे पिता बहुत पहले ही
आहिस्ता-आहिस्ता इस दुनिया से नाता तोड़ने लगे थे।
-0-