1.
सवाल पूछते ही
'यह समय सवाल करने का नहीं!'
'यह समय मानवता के लिए है!'
'यह समय एक-दूसरे के लिए है!'
'यह समय एक होने के लिए है!'
सवाल के बदले आ पड़ते हैं
छरछराते हुए पानी के अनगिनत फव्वारेनुमा शब्द
ठंडा करने
जलते हुए उस सवाल को
सवाल भीगता है
किन्तु ठंडा कहाँ होता है?
2.
सवाल की प्रकृति होती है
जलते अंगारों सी
पानी डालने पर बुझता अवश्य है
किन्तु धुँआ छोड़ जाता है
दम घोंटने वाला
फिर दोबारा निकलता है
किसी फेफड़े से
सवाल बनकर।
3.
उत्तर की आस में धमकाए जाने पर
सवाल बेचारा
चला जाता है मस्तिष्क के किसी कोने में दुबकने के लिए
किसी नस के बहुत अंदर तक
घुमड़ता है किन्तु नहीं दुबक पाता
क्योंकि नहीं पहुँचा जा सकता दोबारा वहाँ
जहाँ से किसी का जन्म होता है
बाहर पनपना ही
जीवित रखता है मानव हो, मानवता हो या कि उसके पर्याय सवाल।
4.
सवाल परिंदा है
नहीं रह सकता वह अपने घोंसले में चुपचाप
वह तो फुदकेगा डाली-डाली
पिंजरे में और भी चीखता है
अंततः मर जाता है
किन्तु
दे जाता है चेतावनी
पूरी कायनात को
कि आज़ादी ही जिंदगी है
चाहे परिंदे की हो या सवाल की।
5.
अब, सब कैद में हैं
तो कम से कम इतनी फुर्सत तो है ही
कि याद कर लें उन सब सवालों को
जिनके जन्म लेते ही
मरोड़ दी थी गर्दन
गर उन्हें जिंदा रहने दिया होता
तो हो सकता है कि
यह कैद उम्रकैद में तब्दील होने से बच सकती थी।
6.
सवाल कभी बुरा नहीं होता
सवाल कभी बेवक्त नहीं होता
सवाल का कोई वक्त नहीं होता
सवाल कभी बेवजह नहीं होता
किंतु अब कोई सवाल नहीं करेगा यह भी सच है
क्योंकि अब उत्तर देने की आपकी बारी है।
- अर्चना तिवारी
सवाल पूछते ही
'यह समय सवाल करने का नहीं!'
'यह समय मानवता के लिए है!'
'यह समय एक-दूसरे के लिए है!'
'यह समय एक होने के लिए है!'
सवाल के बदले आ पड़ते हैं
छरछराते हुए पानी के अनगिनत फव्वारेनुमा शब्द
ठंडा करने
जलते हुए उस सवाल को
सवाल भीगता है
किन्तु ठंडा कहाँ होता है?
2.
सवाल की प्रकृति होती है
जलते अंगारों सी
पानी डालने पर बुझता अवश्य है
किन्तु धुँआ छोड़ जाता है
दम घोंटने वाला
फिर दोबारा निकलता है
किसी फेफड़े से
सवाल बनकर।
3.
उत्तर की आस में धमकाए जाने पर
सवाल बेचारा
चला जाता है मस्तिष्क के किसी कोने में दुबकने के लिए
किसी नस के बहुत अंदर तक
घुमड़ता है किन्तु नहीं दुबक पाता
क्योंकि नहीं पहुँचा जा सकता दोबारा वहाँ
जहाँ से किसी का जन्म होता है
बाहर पनपना ही
जीवित रखता है मानव हो, मानवता हो या कि उसके पर्याय सवाल।
4.
सवाल परिंदा है
नहीं रह सकता वह अपने घोंसले में चुपचाप
वह तो फुदकेगा डाली-डाली
पिंजरे में और भी चीखता है
अंततः मर जाता है
किन्तु
दे जाता है चेतावनी
पूरी कायनात को
कि आज़ादी ही जिंदगी है
चाहे परिंदे की हो या सवाल की।
5.
अब, सब कैद में हैं
तो कम से कम इतनी फुर्सत तो है ही
कि याद कर लें उन सब सवालों को
जिनके जन्म लेते ही
मरोड़ दी थी गर्दन
गर उन्हें जिंदा रहने दिया होता
तो हो सकता है कि
यह कैद उम्रकैद में तब्दील होने से बच सकती थी।
6.
सवाल कभी बुरा नहीं होता
सवाल कभी बेवक्त नहीं होता
सवाल का कोई वक्त नहीं होता
सवाल कभी बेवजह नहीं होता
किंतु अब कोई सवाल नहीं करेगा यह भी सच है
क्योंकि अब उत्तर देने की आपकी बारी है।
- अर्चना तिवारी