रविवार, 10 नवंबर 2013

चल पड़े हैं राह पर मंज़िल तो आ ही जायेगी

धूप है तो क्या घटा इक रोज़ छा ही जायेगी 
चल पड़े हैं राह पर मंज़िल तो आ ही जायेगी 

आज पतझर, फूल, पत्ती, डालियों को रौंद ले 
जब बहार आएगी गुलशन को सजा ही जायेगी 

इस हवस पर आप खुश हैं एक दिन होगा यही
आपकी औकात पलभर में घटा ही जायेगी

जाति, भाषा, धर्म, बोली की सियासत आग है
इस नगर से उस नगर तक बस तबाही जायेगी

आ के टकराता है अक्सर एक अदना सा ख़याल
क्या अदालत में कभी सच्ची गवाही जायेगी ?

इसकी उलझन छोड़िये, इसके लिए मत सोचिये
बुज़दिली कमज़ोर शय है मुँह की खा ही जायेगी

क्रांति हो, ललकार हो या ज़ोर की ओंकार हो
अर्चना होने से कैसे राजशाही जायेगी

14 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत कुछ कह दिया आपने अपनी पंक्तियों के माध्यम से अर्चना जी

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    1. अजय जी..आप बड़े दिनों बाद पधारे बहुत बहुत धन्यवाद

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  2. धूप है तो क्या घटा इक रोज़ छा ही जायेगी
    चल पड़े हैं राह पर मंज़िल तो आ ही जायेगी

    वाह....... क्या बात है.

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  3. रविकर जी ब्लॉग पर आने और चर्चा में सम्मिलित करने के लिए आभारी हूँ

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  4. क्या खूब कहा आपने......
    आ के टकराता है अक्सर एक अदना सा ख़याल
    क्या अदालत में कभी सच्ची गवाही जायेगी ?

    बहुत ही सुंदर प्रस्तुति दी है.........

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  5. आपको पुनः यहाँ देखकर बहुत ही खुशी हुई..... बहुत दिन के बाद ब्लॉग जगत मे कदम रखा आपने.... मुझे तो लगा आपने इस ब्लॉग की दुनिया से अलविदा ले लिया लेकिन आपने यहा पधारकर मुझे गलत साबित कर दिया .........

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  6. bahut hi badiya..
    Please visit my site and share your views... Thanks

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  7. अर्चना होने से सचमुच राजशाही नहीं जा सकती। अर्थपूर्ण।

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  8. चल पड़े हैं राह पर मंज़िल तो आ ही जायेगी
    ..पहले तो जरुरत होती है शुरुवात की ..पहल की ..फिर मंजिल मिल ही जाती है ...
    बहुत सुन्दर ....

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  9. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....

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