अब भी याद आती है
वह।
जब रोते-रोते हिचकी बंध जाती
वह पास आकर पुचकारती
कभी बाँहों में भरकर
ढाढस बँधाती, सहलाती।
अब भी याद आती है
वह।
घर से दूर रहने पर
उसका ही साथ संबल देता
उसके स्पर्श की गर्माहट
कुछ पहचानी सी लगती
अनजानों में एक वही तो
अपनी सी लगती।
अब भी याद आती है
वह।
किसी विद्यालय में
कक्षा के बाहर, नल के पास,
शौचालय के दरवाज़े पर
ठीक उसी तरह
किसी बच्चे को
पुचकारती, ढाढस बँधाती, दुलारती
कपड़ों की मैल धुलवाती
एकदम वैसी ही
कोई ‘आया माँ’
क्या सचमुच तुमको
अब भी याद आती है
वह
तुम्हारी 'आया माँ'?
वह।
जब रोते-रोते हिचकी बंध जाती
वह पास आकर पुचकारती
कभी बाँहों में भरकर
ढाढस बँधाती, सहलाती।
अब भी याद आती है
वह।
घर से दूर रहने पर
उसका ही साथ संबल देता
उसके स्पर्श की गर्माहट
कुछ पहचानी सी लगती
अनजानों में एक वही तो
अपनी सी लगती।
अब भी याद आती है
वह।
किसी विद्यालय में
कक्षा के बाहर, नल के पास,
शौचालय के दरवाज़े पर
ठीक उसी तरह
किसी बच्चे को
पुचकारती, ढाढस बँधाती, दुलारती
कपड़ों की मैल धुलवाती
एकदम वैसी ही
कोई ‘आया माँ’
क्या सचमुच तुमको
अब भी याद आती है
वह
तुम्हारी 'आया माँ'?
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 22/08/2019 की बुलेटिन, " बैंक वालों का फोन कॉल - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंवाह!!बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंबहुत ही मार्मिक और भावों से भरी रचना प्रिय अर्चना जी | सचमुच ' आया माँ ' में मानों जीवन का सार है
जवाब देंहटाएंखुद ही रचनाकार है माँ , इसी लिए तो ईश्वर का रूप साकार है माँ |