स्थापित हो जाना एक ऐसी शय है
जिसे भय होता है हर पल गिराए जाने का
रोपित किए जाते समय भयभीत नहीं करता भूमि का कच्चापन
न ही उखड़ जाने का होता है भय
उस दौरान कितनी ही बार निराई जाती है
जड़ों के आस-पास की कच्ची भूमि
खर-पतवार उग जाने पर उलट-पलट दी जाती है मिट्टी भी
ताकि जड़ों तक पहुँच पाए धूप, हवा और नमी
स्थापित हो जाना एक ऐसी शय है
जिसे भय होता है हर पल खोदे जाने का
जमावट बनी रहे इसलिए आरंभ हो जाता है उपक्रम
जड़ों के आस-पास सीमेंट डालते जाने का
ताकि कठोर शिला सी हो जाए भूमि
इतनी कठोर कि समाप्त हो जाएँ सारे भय
निराए जाने के, खोदे जाने के या फिर मिट्टी के उलट-पलट दिए जाने के।
वृक्ष हो या कोई व्यक्ति
केवल स्थापित हो जाना भर ही संपूर्ण नहीं है
आवश्यकता होती है समय समय पर
जड़ों को पोषित होने की और नीरोगी होने की
वरना तो खोखलापन भी विस्थापित होने जैसा ही है....
जिसे भय होता है हर पल गिराए जाने का
रोपित किए जाते समय भयभीत नहीं करता भूमि का कच्चापन
न ही उखड़ जाने का होता है भय
उस दौरान कितनी ही बार निराई जाती है
जड़ों के आस-पास की कच्ची भूमि
खर-पतवार उग जाने पर उलट-पलट दी जाती है मिट्टी भी
ताकि जड़ों तक पहुँच पाए धूप, हवा और नमी
स्थापित हो जाना एक ऐसी शय है
जिसे भय होता है हर पल खोदे जाने का
जमावट बनी रहे इसलिए आरंभ हो जाता है उपक्रम
जड़ों के आस-पास सीमेंट डालते जाने का
ताकि कठोर शिला सी हो जाए भूमि
इतनी कठोर कि समाप्त हो जाएँ सारे भय
निराए जाने के, खोदे जाने के या फिर मिट्टी के उलट-पलट दिए जाने के।
वृक्ष हो या कोई व्यक्ति
केवल स्थापित हो जाना भर ही संपूर्ण नहीं है
आवश्यकता होती है समय समय पर
जड़ों को पोषित होने की और नीरोगी होने की
वरना तो खोखलापन भी विस्थापित होने जैसा ही है....
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति।
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