रविवार, 6 अक्तूबर 2019

किसका दुःख है जायज़?

कहते हैं एक-दूसरे से दो देशों के रहवासी यह, बताओ किसका दुःख है बड़ा, किसकी परेशानी है जायज़...?

वे कहते हैं, "हमें मेट्रो चाहिए, हम अपने बच्चों को डेढ़-डेढ़ घंटे लोकल में लटकाकर नहीं भेज सकते। हमारी परेशानियों को तुम दूर रहवासी क्या जानो?"

वे कहते हैं, हमें पेड़ चाहिए, हम अपने बच्चों को तार पर लटकाकर नहीं से सकते। हमारी परेशानियों को तुम दूर रहवासी क्या जानों?"

बताओ किसका दुःख है बड़ा, किसकी परेशानी है जायज़...?

वे कहते हैं, "चार लाख में से केवल दो हजार सात सौ पेड़ काटे जाएँगे, बाकी पेड़ तो हैं ना?"

वे कहते हैं, "चार लाख में से केवल दो हजार सात सौ पेड़ काटे जाएँगे, दो हजार सात सौ घरों के रहवासी तो बेघर हुए ना?"

बताओ किसका दुःख है बड़ा, किसकी परेशानी है जायज़...?

वे कहते हैं, "हाँ, यह सही है कि काटे गए हैं दो हजार सात सौ पेड़ लेकिन उसकी जगह बीस करोड़ पेड़ भी तो लगाए हैं, देखा नहीं सरकारी रिकार्ड क्या?"

वे कहते हैं, "हाँ, यह सही है कि काटे गए हैं दो हजार सात सौ पेड़ और उसकी जगह बीस करोड़ पेड़ लगाए हैं, हम कितने मारे गए, रखा है कोई सरकारी रिकार्ड क्या?"

बताओ किसका दुःख है बड़ा, किसकी परेशानी है जायज़...?

वे कहते हैं, "हम भी तो झेल रहे हैं CO2 और प्रदूषण किंतु विकास के लिए क्या हम नहीं कर सकते कुछ चीज़ों को न्योछावर?"

वे कहते हैं, "CO2 तुमसे और प्रदूषण भी तुम्हारा, विकास भी तुम्हारे लिए तो क्या तुम कर सकते हो अपने कुछ बच्चों को भी न्योछावर?"

बताओ किसका दुःख है बड़ा, किसकी परेशानी है जायज़...?
कहते हैं एक-दूसरे से दो देशों के रहवासी यह...

(चित्र- Rohit G Rusia)

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