गुरुवार, 9 जनवरी 2020

मृत्यु का प्रमाण

मैं, पत्थर हूँ,
पड़ा रहता हूँ कहीं भी
चल-फिर नहीं सकता
न कुछ बोल सकता हूँ
न ही देख-सुन सकने की क्षमता है मेरी
काई सी जम जाती है मेरे शरीर पर?
शायद इसलिए कि महसूसता हूँ
जो भी घटित हो रहा हो मेरे इर्द-गिर्द।

तुम, मानव हो
चल-फिर सकते हो
बोल सकते हो
देख-सुन सकते हो
और इन सबसे परे
लिख सकते हो, पर,
शायद स्याही जम गई है तुम्हारे कलम की नोक पर
ठीक वैसे ही जैसे जम जाता है कोलेस्ट्रॉल
हृदय की धमनियों में
जो रोक देता है हृदय की गति को।

हृदय गति का रुकना हो
या कि हो रुकना कलम का
निश्चित ही मृत्यु का प्रमाण है।

क्या अभी जिंदा हो तुम?

- चित्र व कविता अर्चना तिवारी


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