अब
न विचार में गांधी हैं
न हृदय में राम ही
'गांधी' की जगह 'गोली मारो' हो गया
और 'राम' की जगह 'राज करो'।
अब
न देश सोने की चिड़िया है
न अनेकता में एकता ही
'सोने की चिड़िया' 'ट्विटर' हो गई
और 'एकता' 'धारावाहिक निर्माता'।
अब
न बाग में माली है
न पौधे को पानी ही
'माली' 'महंत' हो गया
और 'पानी' 'करंट'।
तो बोलो जय हो संत!
न विचार में गांधी हैं
न हृदय में राम ही
'गांधी' की जगह 'गोली मारो' हो गया
और 'राम' की जगह 'राज करो'।
अब
न देश सोने की चिड़िया है
न अनेकता में एकता ही
'सोने की चिड़िया' 'ट्विटर' हो गई
और 'एकता' 'धारावाहिक निर्माता'।
अब
न बाग में माली है
न पौधे को पानी ही
'माली' 'महंत' हो गया
और 'पानी' 'करंट'।
तो बोलो जय हो संत!
सटीक।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया।
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 31 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया।
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