सोमवार, 21 दिसंबर 2009

रक़ीब



रक़ीबों के दरमियां कोई हमसाज़ मिला
हमसफ़र दुनिया में कोई दूरदराज़ मिला

लगा बैठे दिल को तेरी चाहत का रोग जो
दिल को बहलाने का कोई अंदाज़ मिला

हज़ार ज़ख्म खाकर भी जुबां खामोश रही
हाल--दिल
को कोई अल्फ़ाज़ मिला

सिसकती रही ज़िन्दगी ठोकरों में उनकी
वजूद को जिनके कोई सर अफराज़ मिला

मिटा सके दुनिया के ज़ुल्मों सितम को
ऐसा इस ज़माने में कोई जांबाज़ मिला

शमशान में पड़ी है इंसानियत इस कदर
कि जिंदा करने का कोई इलाज़ न मिला

(चित्र गूगल सर्च से साभार )

24 टिप्‍पणियां:

  1. लगा बैठे दिल को तेरी चाहत का रोग जो
    दिल को बहलाने का कोई अंदाज़ न मिला

    हज़ार ज़ख्म खाकर भी जुबां खामोश रही
    हाल-ए-दिल को कोई अल्फ़ाज़ न मिला

    waah bahut khoobsurat sher ban pade hain..
    mashaallah..lajwaab hain sabhi..
    Badhai..

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  2. बेहतरीन शेरों से सजी उम्दा गजल

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  3. मिटा सके दुनिया ज़ुल्मों सितम को
    ऐसा इस ज़माने में कोई जांबाज़ न मिला

    सच्ची बात...बेहतरीन रचना...वाह.
    नीरज

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  4. "मिटा सके दुनिया ज़ुल्मों सितम को
    ऐसा इस ज़माने में कोई जांबाज़ न मिला"

    इसमें तो सौ प्रतिशत सच्चाई है ।
    बेहद खूबसूरत रचना । आभार ।

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  5. आपने बहुत दिनों के बाद कुछ लिखा.... अच्छा लगा....

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  6. अर्चना जी !
    ब्लॉग - जगत में तो अधिकांश लोग तारीफ की ही जुबान बोलते
    रहते हैं , शायद टिप्पणी - अमृत के लोभ से ..
    किसी की तारीफ से मुझे भला क्या आपत्ति ! परन्तु , बेहतर
    करने और पाने के लिए हमें गलतियों को भी देखना और दिखाना
    चाहिए .. नहीं तो सीखने की प्रक्रिया नहीं फलती - फूलती ..
    पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ , अतः अज्ञानता-जन्य
    त्रुटियों को माफ़ कीजियेगा , फिर भी मैं अपनी बात कहूँगा क्योंकि
    मुझे पता है कि मैं गाली तो दे नहीं रहा हूँ ..
    ...........
    मैंने आपकी पिछली तीन प्रविष्टियों को पढ़ा .
    आपकी गजलों में सबसे बड़ी कमी है , 'बहर' के विधान का
    गड़बड़ाना ( कविताओं में लय कह लीजिये ) इससे अच्छे भाव
    होने पर भी गजल का लुत्फ़ नहीं आ पाता .. यूँ तो लिखने को कुछ भी लिखा
    जा सकता है .. किन्तु महान रचना तो सर्वांगीण पूर्णता से बनती है .. आपकी
    '' देखा तेरी आँखों में '' वाली गजल में यह त्रुटि कम है , जबकि ''उम्मीद'' और इस वाली
    गजल में यह त्रुटि ज्यादा है ..
    हाँ , आपकी भाव-राशि की तारीफ मैं भी करता हूँ ; पर एक पाठक और साहित्य-प्रेमी
    के दायित्व के तौर पर मैं चाहूँगा कि आपकी कविता का शिल्प - पक्ष भी प्रसंशा के योग्य
    बने ..
    कहीं मैंने शुभकामना का खतरा(?) तो नहीं मोल ले लिया !
    ............ आभार ,,,

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  7. सुन्‍दर भाव; अमरेन्‍द्र जी की टिप्‍पणी से गज़ल के संबंध में किंचित जानकारी हुई, यह ब्‍लाग जगत सीखने सिखाने का भी बढिया मंच है.

    धन्‍यवाद.

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  8. आप की रचनाओं में आग तो है लेकिन गजल की शास्त्रीयता के अभाव में चमक नहीं पैदा होती. जहाँ तक मुझे स्मरण है, इससे पहले भी सम्भवतः एक बार मैं इस विषय पर अपने विचार दे चुका हूँ. मेरी बातों को अन्यथा न लीजियेगा, मेरा अभिप्राय केवल इतना है कि एक समर्थ रचनाकार, केवल गजल के व्याकरण के नाते, स्वयं पर लोगों को उँगलियाँ उठाने का अवसर न दे. उस समय भी मैं ने कहा था कि लखनऊ शहर में गजलों के एक से बढ़कर एक उस्ताद मौजूद है, यदि आप उन तक नहीं पहुँच पा रही हैं तो बताएं, ३-४ के नाम, पते, फोन तो उपलब्धकराए जा सकते है.
    बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग तक आया, आप खौल रही होंगी कि इतने दिनों बाद आया तो भी डांट-फटकार से काम ले रहा हूँ. लेकिन आप ही बताएं, अपनों में कमी देखते हुए उन्हें टोका न जाए? आखिर हम एक बिरादरी, एक कुनबे के हैं. कुनबे की बर्बादी देख पाना मुमकिन नहीं है.

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  9. हज़ार ज़ख्म खाकर भी जुबां खामोश रही
    हाल-ए-दिल को कोई अल्फ़ाज़ न मिला

    मिटा सके दुनिया के ज़ुल्मों सितम को
    ऐसा इस ज़माने में कोई जांबाज़ न मिला ...

    बहुत ही अच्छी भाव हैं ....... ख्याल अच्छा हो तो शिल्प सीखना आ जाता है ......... आपकी कल्पना शक्ति ग़ज़ब की है ..... अच्छे शेर हैं .....

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  10. शमशान में पड़ी है इंसानियत इस कदर
    कि जिंदा करने का कोई इलाज़ न मिला

    बहुत ही गहरी बात है !!

    wonderful !! although very sadistic :)

    Warm Regards
    Darshan Mehra

    "Happiness is a Decision !! "
    http://darshanmehra.blogspot.com

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  11. बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......

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  12. हज़ार ज़ख्म खाकर भी जुबां खामोश रही
    हाल-ए-दिल को कोई अल्फ़ाज़ न मिला

    wah wah wah...

    cheers
    surender.

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  13. अर्चना जी, यें बातें निश्चित ही आपके काम आयेंगी...
    आपके खूबसूरत भाव सिर्फ फन के अभाव में अपनी चमक खो बैठते हैं
    सर्वत साहब ने कितनी खूबसूरती से अपनी बात कही है-
    'मेरी बातों को अन्यथा न लीजियेगा, मेरा अभिप्राय केवल इतना है कि एक समर्थ रचनाकार, केवल गजल के व्याकरण के नाते, स्वयं पर लोगों को उँगलियाँ उठाने का अवसर न दे'
    मै अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी जी और सर्वत साहब की बात से सहमत हूं
    हम सभी आपकी रचनाओं को बेदाग देखना चाहते हैं
    नये साल की शुभकामनाओं के साथ
    शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

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  14. लगा बैठे दिल को तेरी चाहत का रोग जो
    दिल को बहलाने का कोई अंदाज़ न मिला
    बढ़िया गज़ल बधाई।
    --नववर्ष मंगलमय हो।

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  15. लगा बैठे दिल को तेरी चाहत का रोग जो
    दिल को बहलाने का कोई अंदाज़ न मिला

    वाह ! उम्दा प्रस्तुति है.
    ग़ज़ल मीटर की जानकारी मुझे भी नहीं है मैं भी सिख ही रहा हूँ.

    नववर्ष की बधाई और शुभकामनाओं सहित

    - सुलभ

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  16. मिटा सके दुनिया के ज़ुल्मों सितम को
    ऐसा इस ज़माने में कोई जांबाज़ न मिला

    शमशान में पड़ी है इंसानियत इस कदर
    कि जिंदा करने का कोई इलाज़ न मिला

    वाह .....अर्चना जी गज़ब का लिखतीं हैं आप .......!!

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  17. नया साल मंगलमय हो ... 2010 हंसी और हंसी-ख़ुशी से भरा रहे !!!!

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  18. बहुत सुन्दर रचना
    लगा बैठे दिल को तेरी चाहत का रोग जो
    दिल को बहलाने का कोई अंदाज़ न मिला
    दिबहुत बहुत आभार

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  19. Archna ji aapki rachna lajavab hai. urdu per aapki pakad bhi tarife kabel hai. Badhai ho...

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