उसी माटी की मूरत पूजी जाती है
गुले गुलज़ार हो जाती है हर डाली
गुलाबों की कलम जब काटी जाती है
सुदामा स्नेह की गठरी तो भारी कर
वज़न से पोटली अब आंकी जाती है
शहीदों पर किसी दिन फूल पड़ते हैं
मगर फिर ख़ाक उन पर डाली जाती है
पुराना रंग रोगन ग़ुम तो है लेकिन
क़सम गंगा की अब भी खाई जाती है
(चित्र गूगल सर्च साभार )
सुदामा स्नेह की गठरी तो भारी कर
जवाब देंहटाएंवज़न से पोटली अब आंकी जाती है
..लाज़वाब। यह एक शेर ही पर्याप्त है इस ब्लॉग के समर्थकों में शामिल होने के लिए।
बहुत बढ़िया अशार हैं....
जवाब देंहटाएंसादर बधाई....
beautiful....!!!
जवाब देंहटाएंलाजवाब...सभी अशआर बेजोड़ हैं...दाद कबूल करें
जवाब देंहटाएंनीरज
कभी कूटी , कभी वो रौंदी जाती है
जवाब देंहटाएंउसी माटी की मूरत पूजी जाती है
Wah ....Khoob Panktiyan rachi hain....
वाह वा... बहुत ख़ूब...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन...बधाई.
जवाब देंहटाएंजन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं
संवाद मीडिया के लिए रचनाएं आमंत्रित हैं...
विवरण जज़्बात पर है
http://shahidmirza.blogspot.com/
शहीदों पर किसी दिन फूल पड़ते हैं
जवाब देंहटाएंमगर फिर ख़ाक उन पर डाली जाती है
आपकी अभिव्यक्ति को नमन । मेर पोस्ट पर आपका स्वागत है ।
धन्यवाद ।
kewal ek shabd
जवाब देंहटाएं'WAAH !"
सुदामा स्नेह की गठरी तो भारी कर
जवाब देंहटाएंवज़न से पोटली अब आंकी जाती है
सत्यता के धरातल पर लिखी गयी सुन्दर ग़ज़ल .....मुबारकबाद
aapki kavita ko slaam !
जवाब देंहटाएंसंग्रह योग्य। .
जवाब देंहटाएंखूब - खूब शुभकामनाये। ......