किताबों के कुछ पन्ने बार-बार खुल जाते हैं
कुछ वो जो मन से पढ़े गए हों
या फिर वो जिन पर मोड़ पड़ गए हों
कुछ के बीच बुकमार्क लगे मिल जाते हैं
जो लगाए गए होते हैं याद रखने के लिए
आगे पढ़े जाने के लिए
लेकिन उन्हें कभी पढ़ने का मौका नहीं मिलता
ऐसे ही किसी दिन दिख जाते हैं
पन्नों के बीच फँसे हुए, बिना अर्थ के....
साफ-सफाई करते हुए हाथ लग जाती हैं कुछ किताबें
किताबें जो कभी पढ़ी नहीं जातीं
बस संभालकर रख दी जातीं हैं
कि शायद कभी कुछ पढ़ना पड़ जाए
भले ही उसके पृष्ठ कट-पिट जाएँ
मलीन होते जाएँ
और धीरे-धीरे गुम होते जाएँ
फिर भी नहीं छोड़ा जाता उनका मोह
लेकिन कभी यूँ ही बैठे ठाले
साफ-सफाई करते हुए
अनचित्ते अनमने से
उनके पृष्ठों की कुछ पंक्तियों पर निगाह चली जाती है
और वो पंक्तियाँ मन से बातें करने लग जाती हैं
फिर...
फिर सहसा यूँ ही अधूरी अनपढ़ी छोड़ दी जाती हैं
दोबारा बड़े जतन से रख दी जाती हैं
अंधेरी अलमारियों में किसी कोने
ऐसी किताबें हों या ऐसे कुछ रिश्ते
जीवन भर संजोकर तो रखे जाते हैं
पर यूँ ही उनपर निगाहें नहीं जातीं
यूँ ही उनसे दो बातें नहीं की जातीं...
कुछ वो जो मन से पढ़े गए हों
या फिर वो जिन पर मोड़ पड़ गए हों
कुछ के बीच बुकमार्क लगे मिल जाते हैं
जो लगाए गए होते हैं याद रखने के लिए
आगे पढ़े जाने के लिए
लेकिन उन्हें कभी पढ़ने का मौका नहीं मिलता
ऐसे ही किसी दिन दिख जाते हैं
पन्नों के बीच फँसे हुए, बिना अर्थ के....
किताबें जो कभी पढ़ी नहीं जातीं
बस संभालकर रख दी जातीं हैं
कि शायद कभी कुछ पढ़ना पड़ जाए
भले ही उसके पृष्ठ कट-पिट जाएँ
मलीन होते जाएँ
और धीरे-धीरे गुम होते जाएँ
फिर भी नहीं छोड़ा जाता उनका मोह
लेकिन कभी यूँ ही बैठे ठाले
साफ-सफाई करते हुए
अनचित्ते अनमने से
उनके पृष्ठों की कुछ पंक्तियों पर निगाह चली जाती है
और वो पंक्तियाँ मन से बातें करने लग जाती हैं
फिर...
फिर सहसा यूँ ही अधूरी अनपढ़ी छोड़ दी जाती हैं
दोबारा बड़े जतन से रख दी जाती हैं
अंधेरी अलमारियों में किसी कोने
ऐसी किताबें हों या ऐसे कुछ रिश्ते
जीवन भर संजोकर तो रखे जाते हैं
पर यूँ ही उनपर निगाहें नहीं जातीं
यूँ ही उनसे दो बातें नहीं की जातीं...
ऐसी किताबें हों या ऐसे कुछ रिश्ते
जवाब देंहटाएंजीवन भर संजोकर तो रखे जाते हैं
पर यूँ ही उनपर निगाहें नहीं जातीं
यूँ ही उनसे दो बातें नहीं की जातीं...
हाँ, ऐसा ही होता है, शयद यही है जीवन का दोराहा-चौराहा
सीधे रास्ते हमेशा सीधे कहाँ होते हैं !
शुक्रिया।
हटाएंबात तो सही है। लेकिन ऐसी किताबें चाहे भले ही न पढ़ी जाऍं, या कभी-कभी पढ़ी जाऍं, लेकिन हम उन्हें जिंदगी भर सीने से लगाकर रखते हैं। कुछ रिश्ते भी ऐसे ही होते हैं, उन्हें हम भले ही रोज याद न करें, पर शायद ही कभी भूल पाते हों।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया।
हटाएंबेहतरीन! सँजोने का सहज भाव है यह! हम भूलते नहीं, वक़्त-बेवक़्त उन्हें निरखते हैं..संतुष्ट होते हैं।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंअतीत की स्म्रतियां कभी भागती नहीं, मन में बसी रहती हैं
जवाब देंहटाएंबेहद खुबसूरत रचना
शुभकामनाएं
सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंयादें न जाए...
साधुवाद !
बहुत दिन बाद आप आए।
हटाएंशुक्रिया।
बहुत ख़ूब!!इस ज़िंदगी के कुछ पन्ने भी ऐसे बंद होते हैं जैसे जिल्दसाज़ की गलती से बिना काटे छूट गए हों, बंद से... जिन्हें किसी ने काटकर अलग नहीं किया और पढने की ज़हमत नहीं उठाई!!
जवाब देंहटाएंसही कहते
हटाएंहैं। कुछ ऐसे भी तो पन्ने होते हैं।
शुक्रिया।
जय हिन्द...जय #हिन्दी_ब्लॉगिंग...
जवाब देंहटाएं#हिन्दी_ब्लॉगिंग सदा रहे!
हटाएंबहुत बढ़िया अंदाज़
जवाब देंहटाएंफिर सहसा यूँ ही अधूरी अनपढ़ी छोड़ दी जाती हैं
जवाब देंहटाएंदोबारा बड़े जतन से रख दी जाती हैं
अंधेरी अलमारियों में किसी कोने
Bhaut kamaal ki rachna...Badhai
शुक्रिया नीरज जी
हटाएंफिर...
जवाब देंहटाएंफिर सहसा यूँ ही अधूरी अनपढ़ी छोड़ दी जाती हैं
दोबारा बड़े जतन से रख दी जाती हैं
अंधेरी अलमारियों में किसी कोने
निमंत्रण पत्र :
जवाब देंहटाएंमंज़िलें और भी हैं ,
आवश्यकता है केवल कारवां बनाने की। मेरा मक़सद है आपको हिंदी ब्लॉग जगत के उन रचनाकारों से परिचित करवाना जिनसे आप सभी अपरिचित अथवा उनकी रचनाओं तक आप सभी की पहुँच नहीं।
ये मेरा प्रयास निरंतर ज़ारी रहेगा ! इसी पावन उद्देश्य के साथ लोकतंत्र संवाद मंच आप सभी गणमान्य पाठकों व रचनाकारों का हृदय से स्वागत करता है नये -पुराने रचनाकारों का संगम 'विशेषांक' में सोमवार १५ जनवरी २०१८ को आप सभी सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद !"एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/