गुरुवार, 15 अगस्त 2019

तुम देशद्रोही हो!

क्या?
तुम प्रश्न करते हो?
तुम देशद्रोही हो!

तुम नमन नहीं सलाम करते हो?
तुम देशद्रोही हो!

तुम सूरज की जगह चाँद देखते हो?
तुम देशद्रोही हो!

तुम गाय को नहीं बच्चे को बचाते हो?
तुम देशद्रोही हो!

तुम राम नहीं ईश्वर कहते हो?
तुम देशद्रोही हो!

तुम जय भारत नहीं जय हिंद कहते हो?
तुम देशद्रोही हो!

तुम गाय का नहीं भैंस का दूध पीते हो?
तुम देशद्रोही हो!

तुम बधाई नहीं मुबारक़बाद देते हो?
तुम देशद्रोही हो!

तुम वंदे मातरम् नहीं वसुधैव कुटुंबकम् कहते हो?
तुम देशद्रोही हो!

तुम खून नहीं अमन कहते हो?
तुम देशद्रोही हो!

तुम बलकरन के साथ हामिद को भी पोषते हो?
तुम देशद्रोही हो!

तुम केसर नहीं धान उगाते हो?
तुम देशद्रोही हो!

तुम तंत्र नहीं लोक चाहते हो?
तुम देशद्रोही हो!

तुम पुराण नहीं संविधान पढ़ते हो?
तुम देशद्रोही हो!
तुम देशद्रोही हो! तुम पाकिस्तान से हो!

9 टिप्‍पणियां:

  1. वाह। ऐसा लगा जैसे मैंने ही लिखा है। वैसे हम मान चुके हैं कि हम हैं भी।

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  2. व्वाहहहह
    आभार...
    बढ़िया लेखन
    कुछ नया तो मिला
    सादर..

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  3. "तुम वंदे मातरम् नहीं वसुधैव कुटुंबकम् कहते हो?" कुछ मेरे जैसे 'स्टुपिड' माने जाने वाले लोगबाग के मन का उदगार ...

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  4. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 17 अगस्त 2019 को साझा की गई है........."सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद

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  5. पूर्ण रूप से सहमत नहीं, पूर्ण रूप से असहमत नहीं। पर असहमत हूँ।
    आपने विचार रखा इसके लिए आपको बधाई। यह वाकई एक भिन्न रचना है।

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  6. दुराग्रहों पर प्रहार करती सार्थक रचना ।

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