मंगलवार, 3 अगस्त 2010

मुहब्बतें हैं कहाँ, अब तो वासनाएं हैं



घुटन है, पीर है, कुंठा है, यातनाएं हैं
मुहब्बतें हैं कहाँ, अब तो वासनाएं हैं

जमाना जब भी कोई धुन बजाने लगता है
थिरकने लगतीं उसी ताल पर फिजाएं हैं

नजर लगाने की खातिर हैं नेकियाँ आईं
उतारने को नजर आ गईं बलाएं हैं

पराग बाँट रही हैं, परोपकारी हैं
कली कली के दिलों में बसी वफाएं हैं

जमीन अब भी है प्यासी किसी हिरन की तरह
फलक पे झूम रहीं सांवली घटाएं हैं

उड़न खटोले की मानिंद उड़ रहे बादल
बरस भी जाएं हर इक लब पे यह दुआएं हैं

मचल मचल के चले जब कभी यहाँ पुरवा
गुमान होता है जैसे तेरी सदाएं हैं

ये बिजलियों की चमक के भी क्या नजारे हैं
पहन के हार चली जैसे दस दिशाएं हैं

पड़े जो बूँद तो सोंधी महक धरा से उठे
हसीन रुत की निराली यही अदाएं हैं

(चित्र गूगल सर्च से साभार )

23 टिप्‍पणियां:

  1. मचल मचल के चले जब कभी यहाँ पुरवा
    गुमान होता है जैसे तेरी सदाएं हैं
    सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई

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  2. बहुत खूब !! अच्छे शेर .... बढ़िया ग़ज़ल !!!

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  3. बहुत खूबसूरती से आपने गज़ल कही है...बहुत उम्दा

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  4. नजर लगाने की खातिर हैं नेकियाँ आईं
    उतारने को नजर आ गईं बलाएं हैं
    bahuk khoob

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  5. पूरी गजल ही काबिले-तारीफ है. धीरे-धीरे आपकी गजलों में आपका लहजा अपनी पहचान बनाता जा रहा है. किसी रचनाकार के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि है अगर उसके लेखन-भाषा-शैली भी उसकी पहचान का माध्यम बन जाएँ.
    मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं ही लेकिन एक बात मैं जरूर कहना चाहूँगा--- अभी आपने सफर का आगाज़ किया है, रास्ता बहुत लम्बा है और मंजिल तभी मिलेगी जब बेहद मशक्कत करेंगी आप. अगर साहित्य में स्थान बनाना है तो यह याद रखना होगा. अगर टाइम पास है, फिर कोई बात नहीं.

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  6. एक बहुत ही उम्दा और दिल को छूने वाली गज़ल्………………हर शेर बेहतरीन्।

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  7. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  8. इसे पढकर दो पंक्तियां याद आ गई

    नफ़रत की तो गिन लेते हैं, रुपया आना पाई लोग,
    ढ़ाई आखर कहने वाले, मिले न हमको ढ़ाई लोग।

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  9. आपकी यही गजल तो तरही मुशायरे वाले ब्लॉग पर भी लगी है. वहाँ टिप्पणी देने में कठिनाई हो रही थी लेकिन यहाँ आसानी है. आप की पुरानी पोस्ट भी देखीं. आप तो बहुत अच्छा लिखती हैं और आपके विषय भी बहुत दमदार होते हैं. आप महिला लेखिकाओं में अपनी अलग पहचान बना रही हैं, आपने ध्यान दिया, आपकी रचनाओं में अन्य लोगों की तरह रोमांस नहीं होता और यही आपको औरों से अलग करता है.

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  10. सुबीर जी के ब्लॉग पर जितनी अच्छी लगी उतनी ही अच्छी ये ग़ज़ल यहाँ भी लगी...बेहतरीन चीज़ की येही तो खूबी है हर कहीं अच्छी लगती है...लिखती रहिये...
    नीरज

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  11. maza aa gaya aaki kavita pad kar,,
    bahut hi khoob,,,,,
    Meri Nayi Kavita par aapke Comments ka intzar rahega.....

    A Silent Silence : Zindgi Se Mat Jhagad..

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  12. अर्चना जी . एक मुकम्मल गजल पढ़कर मन प्रसन्न हो गया ।
    लाजवाब ।

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  13. नजर लगाने की खातिर हैं नेकियाँ आईं
    उतारने को नजर आ गईं बलाएं हैं
    वाह....
    अर्चना जी, तरही में शामिल...
    बेहतरीन ग़ज़लों में से एक है आपका कलाम.

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  14. waah waah waah

    kya khoob likha hai .. mujhe to saare hi sher pasand aaye . gazal bahut behatreen ban padhi hai .. badhayi

    आपसे निवेदन है की आप मेरी नयी कविता " मोरे सजनवा" जरुर पढ़े और अपनी अमूल्य राय देवे...
    http://poemsofvijay.blogspot.com/2010/08/blog-post_21.html

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  15. घुटन है, पीर है, कुंठा है, यातनाएं हैं
    मुहब्बतें हैं कहाँ, अब तो वासनाएं हैं
    ..वाह!

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