शुक्रवार, 21 अगस्त 2009

उम्मीद



शामें ग़म तन्हाई के साज बजते रहे
तेरे दर पर दिल के पैगाम भेजते रहे

घटाओं की बेवफाई का गिला क्या करें
आँखों के समंदर में नमी सहेजते रहे

वो गए ऐसे कि फिर न आए कभी
क़दमों की आहट से मकान गूंजते रहे

अश्कों से बुझी जली बस्ती दिल की
अरमानों की ख़ाक के गुबार लरजते रहे

बन न सका आशियाँ सपनो का
शहर मिटटी के घरौंदों से सजते रहे

ख़त्म होंगे वक़्त कभी खिजाओं के
'उम्मीद' लिए हर ख़ुशी तजते रहे


(चित्र गूगल सर्च से साभार)

46 टिप्‍पणियां:

  1. वाह...बेहतरीन भावों से सजी रचना...मुझे पसंद आई

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  2. अश्कों से बुझी जली बस्ती दिल की
    अरमानों की ख़ाक से गुबार उठते रहे

    Waah !!! bahut bahut bahut hi behtareen....dil ko chhoo gayi bhavuk kar gayi aapki ya sundar rachna..

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  3. ख़त्म होंगे वक़्त कभी खिजाओं के
    'उम्मीद' लिए हम सितम झेलते रहे..umeed ko thame rahe...khoobsurat post...

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  4. घटाओं की बेफाई का गिला क्या करें
    आँखों के समंदर में नमी सहेजते रहे

    सुन्दर अभिव्यक्ति।।।।

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  5. ख़त्म होंगे वक़्त कभी खिजाओं के
    'उम्मीद' लिए हम सितम झेलते रहे
    'सुन्दर बेहतरीन ,पसंद आई

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  6. अश्कों से बुझी जली बस्ती दिल की
    अरमानों की ख़ाक से गुबार उठते रहे

    -बहुत बेहतरीन!! बधाई.

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  7. बहुत खूब ---
    भाव सघन और अभिव्यक्ति प्रबल
    बना न सका आशियाँ सपनो का
    मिटटी के घरौदों से खेलते रहे

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  8. दीदार की चाहत में राह देखते रहे....
    आप का यह भाव,गहरी अभिव्यक्ति।

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  9. घटाओं की बेफाई का गिला क्या करें
    आँखों के समंदर में नमी सहेजते रहे

    उम्मीद काफी खूबसूरत है अर्चना जी।

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  10. बना न सका आशियाँ सपनो का
    मिटटी के घरौदों से खेलते रहे

    बेहतरीन अशआर,
    बढ़िया गज़ल।
    बधाई।

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  11. बहुत अच्छा लिखा है अर्चना जी ...

    ख़त्म होंगे वक़्त कभी खिजाओं के
    'उम्मीद' लिए हम सितम झेलते रहे ...
    क्या बात है ...

    बहुत बहुत बधाई ... वैसे आपकी तो हर नज़्म ही लाजवाब होती है ..

    बहुत अच्छा लगा पढ़के ...
    लिखती रहिये ..
    :)

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  12. बहुत सुन्दर ग़ज़ल बन पडी है ,
    घटाओं की बेफाई
    शायद आप बेवफाई लिखना चाह रहीं थीं , edit कर लें |

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  13. बहुत खूब अर्चना जी एक बेहतरीन रचना मेरी बधाई स्वीकार करे
    सादर
    प्रवीण पथिक
    9971969084

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  14. खूबसूरत कविता...उम्मीद को बखूबी सराहा आपने..

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  15. बहुत सुन्दर अर्चना जी बहुत बहुत बधाई
    घटाओं की बेफाई का गिला क्या करें
    आँखों के समंदर में नमी सहेजते रहे
    kyaa baat kahee vaah

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  16. बना न सका आशियाँ सपनो का
    मिटटी के घरौदों से खेलते रहे
    बहुत सुन्दर रचना है बधाईr

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  17. बहुत ही सुन्दर ...लेखनी और शब्दों की सुन्दरता का साथ ..चित्र ने क्या खूब निभाया है ...

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  18. बन न सका आशियाँ सपनों का
    मिट्टी के घरौंदों से खेलते रहे ,
    सुन्दर रचना बधाई

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  19. अश्कों से बुझी जली बस्ती दिल की
    अरमानों की ख़ाक से गुबार उठते रहे

    sunder abhivyakti hai...

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  20. बन न सका आशियाँ सपनो का
    मिटटी के घरौदों से खेलते रहे


    wah! bahut hi behtareen lines.......

    Do keep it up.........

    A+++++++++

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  21. सर्वप्रथम ब्लॉग पर आने के लिए शुक्रिया. आप की ताजातरीन गजल पढी. प्रयास सराहनीय है. एक मुफ्त की सलाह देना चाहता हूँ: गजल विधा कुछ ट्रेनिंग - कुछ अध्ययन - कुछ अभ्यास मांगती है. आप अन्यथा न लें, मैं भी कभी - कुछ भी लिखे को गजल मान लेता था, कविता समझ लेता था. आप लखनऊ जैसे शहर में हैं, गजल के एक से एक हस्ताक्षर मौजूद हैं वहां. किसी से थोड़ी कोचिंग / मशविरा लेने से कुछ बिगड़ना नहीं है सुधरने के सिवा. मेरी यह मुफ्त की राय यदि बुरी लगी हो तो इस कमेन्ट को डिलीट कर दीजियेगा. दरअसल तारीफों के लम्बे काफिले में यह अकेली कमेन्ट है जो स्वर से अलग है. मेरा मानना है कि अंतिम सांस तक विद्यार्थी ही रहना है, हो सकता है कुछ लोग गुरु हो गये हों. लेकिन मैं यही समझता हूँ कि विद्या ऐसा अथाह सागर है जिसे खत्म कर पाना असम्भव है. आपका क्या ख्याल है?

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  22. E sitamgar azmale....aaj tere sitam ki inteha...
    hum bhi thame baithe hai ummid ka daman....
    chahe ye ummid hi karde humen fana....

    vakai lajawab....

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  23. वो गए ऐसे कि फिर न आए कभी
    दीदार की चाहत में राह देखते रहे
    बहुत खूब .....क्या बात है
    आभार


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  24. ख़त्म होंगे वक़्त कभी खिजाओं के
    'उम्मीद' लिए हम सितम झेलते रहे
    Bahut sunder rachna ke liye badhaee. tasweeren bhee bahut sunder.

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  25. अर्चनाजी
    आपका सौन्दर्य बोध बहुत परिष्कृत है
    फ़िलहाल मैंने सौद्र्य्या सज्जा का आनंद लिया
    रचनाएँ फुर्सत me पढ़ कर टिप्पणी दूंगा

    सृजनशीलता के संसार में साधना के लिए साधुवाद

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  26. अर्चना जी,
    आपके पास सुंदर भाव हैं और आपको उन्हे शब्द देना भी खूब आता है। भाव हों तो व्याकरण सीख लेना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है। sarwat m जी की सलाह उचित लग रही है। लिख्ते रहिये , आप अच्छा लिखती हैं।

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  27. उम्मीद का बने रहना ही जीवन है....
    आशा अमरधन..
    बहुत अच्छी रचना..

    जवाब देंहटाएं
  28. अर्चना जी आपकी भावपूर्ण रचना पढ़ी...आपमें बहुत अच्छी रचनाकार बनने की अपार संभावनाएं भी दिखाई दीं...अगर बुरा न मानें तो एक बात कहूँ...ग़ज़ल में काफिये के रख रखाव पर बहुत ध्यान दिया जाता है...आपने मतले में (ग़ज़ल के पहले दो मिसरे या पहला शेर) छेड़ते और भेजते काफिये प्रयोग किये हैं जो व्याकरण की दृष्टि से गलत हैं...मूल शब्द छेड़ और भेज है जिसकी तुक नहीं मिलती इसलिए इस ग़ज़ल में दोष आ गया है...इसे ईता दोष कहते हैं...गुरुदेव पंकज जी की कक्षा में इसके बारे में अच्छे से बताया है... आप लिखती रहें बेधड़क क्यूँ की लिखते रहने से ये सब दोष धीरे धीरे समझ भी आयेंगे और दूर भी हो जायेंगे...और हाँ सर्वात जी ने बहुत अच्छी बात कही...सीखना कभी मत छोडें...आशा है मेरी बात को आप अन्यथा नहीं लेंगी...
    खुश रहें
    नीरज

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  29. इक शाम तनहा ढलने को है
    इक सुबह से सूरज मिलने को है

    वक्त के पाटे पर तार-तार हुए
    इक रूह नए कपड़े सिलने को है

    समंदर के तूफानों से गुजर आई
    इक कागज़ की कश्ती गलने को है

    चिता की लपटों की गरमी पाकर
    जज्बातों की बर्फ पिघलने को है

    अश्कों की बारिश में भीगकर
    दिल का मैल अब धुलने को है

    जन्मों के सांचे में ढली मोम से
    इक शमा नई शब् में जलने को है

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    congretulations
    keep it up
    follow guide lines from mr sarwat n neeraj ji

    जवाब देंहटाएं
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  31. sunder rachna. archna ji mera ye blog bhi dekhen.

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  32. खिजाओं के वक्त हर हाल में ख़त्म होंगे ,हमारी हार्दिक शुभकामनाएं

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  33. सुंदर रचना
    जो भावुक है उसे जज्ज़बातों को ब्यां करना आ ही जाता है ।
    सुंदर भाव अभिव्यक्ति ।

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  34. बन न सका आशियाँ सपनो का
    शहर मिटटी के घरौंदों से सजते रहे
    वाह बहुत अच्छा लिखती हैं...
    मीत

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  35. वाह .....अर्चना जी गज़ब का लिखतीं हैं आप .......!!

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