बुधवार, 25 मई 2016

रिश्ता...

जो करीब है
वो दूर बहुत है, 
जो दूर बहुत है
वही करीब है...









रविवार, 10 नवंबर 2013

चल पड़े हैं राह पर मंज़िल तो आ ही जायेगी

धूप है तो क्या घटा इक रोज़ छा ही जायेगी 
चल पड़े हैं राह पर मंज़िल तो आ ही जायेगी 

आज पतझर, फूल, पत्ती, डालियों को रौंद ले 
जब बहार आएगी गुलशन को सजा ही जायेगी 

इस हवस पर आप खुश हैं एक दिन होगा यही
आपकी औकात पलभर में घटा ही जायेगी

जाति, भाषा, धर्म, बोली की सियासत आग है
इस नगर से उस नगर तक बस तबाही जायेगी

आ के टकराता है अक्सर एक अदना सा ख़याल
क्या अदालत में कभी सच्ची गवाही जायेगी ?

इसकी उलझन छोड़िये, इसके लिए मत सोचिये
बुज़दिली कमज़ोर शय है मुँह की खा ही जायेगी

क्रांति हो, ललकार हो या ज़ोर की ओंकार हो
अर्चना होने से कैसे राजशाही जायेगी

रविवार, 9 अक्टूबर 2011

ऐसा भी !!!




नकली बाम / ऊँचे दाम
त्रस्त अवाम / मूक निजाम
भ्रष्टाचार / होता आम
शहरी रोड / ट्रेफिक जाम
कुर्सी आज/ चारों धाम
ख़ूनी हाँथ / मुख में राम
उजड़े खेत/ हल नीलाम
कन्या दान/ मुश्किल काम
राहत  कोष/ माघी घाम
बनते माल/ मिटते ग्राम
अफ़सर राज/ फ़ाइल झाम
आँगन धूप/ ढलती शाम
झूठी शान / नकली नाम
अब  श्रमदान/ पैसा  थाम
रावण  राज /कब आराम
अपना  देश / फिर से गुलाम ?

(चित्र गूगल सर्च से साभार )

रविवार, 2 अक्टूबर 2011

उसी माटी की मूरत पूजी जाती है




कभी कूटी , कभी वो रौंदी जाती है 
उसी माटी की मूरत पूजी जाती है 

गुले गुलज़ार हो जाती है हर डाली  
गुलाबों की कलम जब काटी जाती है 

सुदामा स्नेह की गठरी तो भारी कर 
वज़न से पोटली अब आंकी जाती है 

शहीदों पर किसी दिन फूल पड़ते हैं 
मगर फिर ख़ाक उन पर डाली जाती है 

पुराना रंग रोगन ग़ुम तो है लेकिन 
क़सम गंगा की अब भी खाई जाती है 

(चित्र गूगल सर्च साभार ) 

शनिवार, 24 सितंबर 2011


पहचान लेगा कोई जौहरी तुझको भी 
अपनी चमक को न तू धुंधली पड़ने दे 

रविवार, 28 नवंबर 2010

ज्ञान के दीप जला कर देखो



कर्म को देव बना कर देखो 
सत्य के मार्ग पे जा कर देखो 

साथ में होंगे करोड़ों इक दिन 
पाँव तो पहले बढ़ा कर देखो 

सारे इंसान हैं इस दुनिया में 
सरहदें अपनी मिटा कर देखो 

क्या है नफरत, ये अदावत क्या है 
प्रेम का राग तो गा कर देखो 

मंजिलें साफ़ नज़र आएंगी 
ज्ञान के दीप जला कर देखो




बुधवार, 25 अगस्त 2010

फ़न से किस का रिश्ता है





कौन यहाँ अब पूछे फ़न को,आज कहाँ यह दिखता है
नाम बिके हैं महफ़िल-महफ़िल, फ़न  से किस का रिश्ता है

जोंक बनें हैं आज चिकित्सक ,खून सभी का चूसे हैं
उनके दवाखानों में भी नित, मौत का तांडव होता है

खेल, खिलाड़ी, अभिनेता को, लोग बिठाते सर-माथे
वीर जवानों की कुर्बानी, मोल बहुत ही सस्ता है

चावल, गेहूँ, सब्जी, दालें, गायब हो गए थाली से
दाम गिरे मोबाइल, सिम के,पेट क्या इनसे भरता है

शांति, सुरक्षा, खुशहाली का राज तो अब इक सपना है
पाप पले अब थानों में आतंक पुलिस का रहता है


(चित्र गूगल सर्च से साभार )

मंगलवार, 3 अगस्त 2010

मुहब्बतें हैं कहाँ, अब तो वासनाएं हैं



घुटन है, पीर है, कुंठा है, यातनाएं हैं
मुहब्बतें हैं कहाँ, अब तो वासनाएं हैं

जमाना जब भी कोई धुन बजाने लगता है
थिरकने लगतीं उसी ताल पर फिजाएं हैं

नजर लगाने की खातिर हैं नेकियाँ आईं
उतारने को नजर आ गईं बलाएं हैं

पराग बाँट रही हैं, परोपकारी हैं
कली कली के दिलों में बसी वफाएं हैं

जमीन अब भी है प्यासी किसी हिरन की तरह
फलक पे झूम रहीं सांवली घटाएं हैं

उड़न खटोले की मानिंद उड़ रहे बादल
बरस भी जाएं हर इक लब पे यह दुआएं हैं

मचल मचल के चले जब कभी यहाँ पुरवा
गुमान होता है जैसे तेरी सदाएं हैं

ये बिजलियों की चमक के भी क्या नजारे हैं
पहन के हार चली जैसे दस दिशाएं हैं

पड़े जो बूँद तो सोंधी महक धरा से उठे
हसीन रुत की निराली यही अदाएं हैं

(चित्र गूगल सर्च से साभार )

मंगलवार, 20 जुलाई 2010

दोस्तों की आस्तीनों में छुपे हैं नाग अब


दोस्तों की आस्तीनों में छुपे हैं नाग अब
रहनुमा, रहज़न बने हैं, इनसे बच कर भाग अब

गांव, बस्ती, शहर, क़स्बा, देश का हर भाग अब
जल चुका है, क्या बुझेगी नफरतों की आग अब

भूख, बेकारी, गरीबी और बे तालीम लोग
कब तलक ये दुःख सहें हम, क्यों न जाएँ जाग अब

जो पड़ोसी गा रहा है, आप भी वो गाइए
तीर जैसा चुभ रहा है शांति वाला राग अब

आरियाँ ही चल रही है सब्ज़ बागों पर यहाँ
सारे पंछी जा चुके हैं बस बचे हैं काग अब

गालियाँ, बेहूदे जुमले, बदतमीजी और नाच
कौन फागुन में यहाँ पर गा रहा है फाग अब


शांत साहिल देख कर किस को पता चल पाएगा
ज्वार सागर पर चढ़ा था, कह रहे हैं झाग अब


(चित्र गूगल सर्च से साभार)


सोमवार, 7 जून 2010

बस आँखों में दिखता पानी


सूखे खेत, सरोवर,झरने,बस आँखों में दिखता पानी

हाहाकार मचा है जग में,छाए मेघ न बरसा पानी।



भ्रष्टाचार के दलदल में अब,अपना देश धंसा है पूरा

कौन उबारे, सबके तन में ठंडा खून रगों का पानी।



अब रक्षक को भक्षक कहिए,कलियां रौंद रहे है माली

लोग तमाशा देख रहे हैं,किसकी आंख से छलका पानी।



खेती किस किस से जूझेगी,किसका किसका हल ढूंढेगी

एक साथ इतने संकट हैं,आंधी,बिजली,सूखा,पानी।



प्रेम वचन शीतल वानी है जिससे पीर मिटे सब मन की

सूखे, झुलसे तरू के तन की जैसे प्यास बुझाता पानी।




(चित्र गूगल सर्च सर साभार )


बुधवार, 26 मई 2010

किसी भी शाख पे अब घोंसला नहीं है क्यों ?


जवां दिलों में कहीं हौसला नहीं है क्यों

मेरे वतन में कोई रहनुमा नहीं है क्यों


चमन को सींच रहा है लहू से जो माली

उसे चमन में कहीं आसरा नहीं है क्यों


हजारों बोझ तले क्यों सिसकता है बचपन

वो खुल के हंसता, कभी खेलता नहीं है क्यों


हमेशा उसने भरे हैं अमीर के खलिहान

मगर गरीब को दाना मिला नहीं है क्यों


कभी चमन की फिज़ा घोंसलों से थी गुलज़ार

किसी भी शाख पे अब घोंसला नहीं है क्यों


कई करोड़ हैं मन्दिर, जगह जगह पूजन

किसी के दिल में मगर आस्था नहीं है क्यों


(चित्र गूगल सर्च से साभार)

सोमवार, 17 मई 2010

बाघ १४११





रहने दो आशियाँ मेरा भी

मेरी भी ईश ने रचना की


वाहन बना भवानी माँ का

हूँ बाघ शान भारत माँ की


क्यूँ मारता मुझे है मानव

क्यूँ मैं बना सभी का दोषी


गिनती हजार की है केवल

संख्या बहुत बची कम मेरी


अस्तित्व गर मिटाया मेरा

हो जाएगी समाप्त सृष्टी


हैं ये हरे वसन धरती के

मत काट तन सघन वन शाखी



(चित्र गूगल सर्च से साभार)

रविवार, 9 मई 2010

तेरे आंचल में माँ



आप सभी को मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ !!

यह ग़ज़ल मैं अपनी माँ के चरणों में समर्पित कर रही हूँ ,

वो अब इस दुनिया में नहीं हैं , फिर भी हमेशा मेरे साथ हैं "माँ"



सारे जहाँ भर का सुकूं मिलता तेरे आंचल में माँ

जब गम सताएं सैकड़ों, लिपटा तेरे आंचल में माँ


दौड़ी मेरी सुन आह माँ घायल हुआ मैं जब कभी

बाहों में तू ने ले लिया, सिमटा तेरे आंचल में माँ


उंगली पकड़ तेरी चला, बचपन हुआ मेरा जवां

लेकिन अभी तक ढूंढता, ममता तेरे आंचल में माँ


माँ, सिर्फ माँ, मैं ने कहा, जब बोलना आया मुझे

मैं ने झरोखा स्वर्ग का देखा तेरे आंचल में माँ


साथी नहीं कोई मेरा, जाऊं कहाँ, ढूंढूं किसे

इच्छा है तेरी गोद की, रहता तेरे आंचल में माँ


गम घेरते हैं अब मुझे, मुझ से सहा जाता नहीं

तू पास होती गर मेरे, सोता तेरे आंचल में माँ



(चित्र गूगल सर्च से साभार )

सोमवार, 15 फ़रवरी 2010

दुश्मन




मिलते हैं यहाँ दुश्मन, हमसाज़ नहीं मिलते
जो दोस्त हैं उनके भी अंदाज़ नहीं मिलते

ये ज़ुल्मो-सितम कैसे मिट पाएँगे दुनिया से
बुजदिल हैं सभी चेहरे जांबाज़ नहीं मिलते

जख्मी है बदन अपना ये रूह भी जख्मी है
हाल अपना बताने को अल्फाज़ नहीं मिलते

कोई भी किसी से अब कुछ भी नहीं कहता है
इंसानों की बस्ती में हमराज़ नहीं मिलते

उलझन से, मुसीबत से, अब हुस्न के जलवों में
नखरे नहीं मिलते हैं, वो नाज़ नहीं मिलते.



(चित्र गूगल सर्च से साभार)

सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

न समझो कि खुद से जुदा कर रहे हैं

दुआ कर रहे हैं, विदा कर रहे हैं
न समझो कि खुद से जुदा कर रहे हैं

सफल जिंदगानी जियो तुम हमेशा
खुदा से यही इल्तिजा कर रहे हैं

जो फूलों से माली का रिश्ता चमन में
वही फर्ज़ हम भी अदा कर रहे हैं

खिलाओ चमन को तुम अपने गुणों से
यही कामना हम सदा कर रहे हैं

अधूरी तमन्ना कोई रह न जाए
सभी रात दिन आसरा कर रहे हैं

बुलंदी मिले तुम को आकाश जितनी
रुकें ना कदम, कामना कर रहे हैं

तुम्हें हम ने सींचा, संवारा, सजाया
सजल नैन से अब विदा कर रहे हैं


सोमवार, 21 दिसंबर 2009

रक़ीब



रक़ीबों के दरमियां कोई हमसाज़ मिला
हमसफ़र दुनिया में कोई दूरदराज़ मिला

लगा बैठे दिल को तेरी चाहत का रोग जो
दिल को बहलाने का कोई अंदाज़ मिला

हज़ार ज़ख्म खाकर भी जुबां खामोश रही
हाल--दिल
को कोई अल्फ़ाज़ मिला

सिसकती रही ज़िन्दगी ठोकरों में उनकी
वजूद को जिनके कोई सर अफराज़ मिला

मिटा सके दुनिया के ज़ुल्मों सितम को
ऐसा इस ज़माने में कोई जांबाज़ मिला

शमशान में पड़ी है इंसानियत इस कदर
कि जिंदा करने का कोई इलाज़ न मिला

(चित्र गूगल सर्च से साभार )

रविवार, 30 अगस्त 2009

देखा तेरी आंखों में...


देखा तेरी आँखों में अक्स कुछ अपना सा
गाने लगा मन इक प्यार का नगमा सा

छू गई मेरे दिल का कोई तार कहीं
छाया था पलकों पे इकरार का सपना सा

अनजान थी मैं खुद के हाले दिल से
देखा मैंने उनमें इक हमसफ़र अपना सा

ले गई वो
मुझको चुराकर मुझ ही से
कर गई महफिल में मुझको तनहा सा

उनकी चंचलता ने मदहोश कर दिया
छाने लगा हो जैसे इक प्यार का नशा सा


(चित्र गूगल सर्च से साभार)

शुक्रवार, 21 अगस्त 2009

उम्मीद



शामें ग़म तन्हाई के साज बजते रहे
तेरे दर पर दिल के पैगाम भेजते रहे

घटाओं की बेवफाई का गिला क्या करें
आँखों के समंदर में नमी सहेजते रहे

वो गए ऐसे कि फिर न आए कभी
क़दमों की आहट से मकान गूंजते रहे

अश्कों से बुझी जली बस्ती दिल की
अरमानों की ख़ाक के गुबार लरजते रहे

बन न सका आशियाँ सपनो का
शहर मिटटी के घरौंदों से सजते रहे

ख़त्म होंगे वक़्त कभी खिजाओं के
'उम्मीद' लिए हर ख़ुशी तजते रहे


(चित्र गूगल सर्च से साभार)

बुधवार, 5 अगस्त 2009

इक तारा गर्दिशों में कहीं खो गया



इक तारा गर्दिशों में कहीं खो गया
अपनी ही तन्हाई में तल्लीन सो गया

भटक रहा जुस्तजू की तलाश के लिए
घूम रहा कन्धों पे अपनी ही लाश लिए
इक शायर बदनाम कहीं हो गया

कश्ती क्या डूबती जो चली ही नहीं
रिश्ते क्या टूटते जो बने ही नहीं
अपनी ही कशमकश में ग़मगीन हो गया

इक तारा गर्दिशों में कहीं खो गया
अपनी ही तन्हाई में तल्लीन सो गया



शनिवार, 1 अगस्त 2009

इक रिश्ता आसमानी



चलो इक रिश्ता आसमानी बना लाएँ
जिसकी छाँव में ग़मों को हम भुलाएँ

आगोश में है जिसकी ठंडक चांदनी की
बिखेर रही दोस्ती वही कोमल फिजाएँ

गर्दिश-ए-दौरां से घायल जज्बातों के
ग़मों का इजहार तुझ ही से कर पाएँ

पलकों पे ढलकी अश्कों की बूँदें भी
तेरे दिल की सीपी में मोती बन जाएँ

जन्नत की शबनम बरसती है जहाँ
ऐ दोस्ती तुझे देते हैं फ़रिश्ते भी दुआएँ


(चित्र गूगल सर्च से साभार)